भारत में गरीबी, भुखमरी, अभाव निवारण के लिए संतुलित शिक्षा आवश्यक है

सबसे बड़ा दुर्भाग्य तो यह है कि आज भी देश में 80 करोड़ लोगों को भुखमरी से बचाने के लिए पाँच किलो अनाज देने की व्यवस्था सरकार को करनी पड़ रहीहै। इसी के साथ ऐसा लगता है कि देश की ध्वस्त पड़ी शिक्षा व्यवस्था और फटेहाल स्वास्थ्य और चिकित्सा प्रणाली की ओर तो किसी भी सरकार का ध्यान ही नहीं जाता कि यह भी कोई समस्या है । दुनिया का इतिहास गवाह है कि बिना पूर्ण रूप से शिक्षित हुए कोई भी देश आज तक आगे नहीं बढ़ पाया । यह स्पष्ट है कि अगर देश की शिक्षा व्यवस्था फटेहाल रहेगी तो कभी भी देश के नागरिकों को सम्मानजनक ढंग से जीवन जीने का अवसर नहीं मिल पाएगा ।
वी यस पाण्डेय

लोक सभा के चुनाव सर पर हैं और मई के अंतिम सप्ताह में फिर नई सरकार केंद्र में आ जाएगी। हमारे देश का यह सौभाग्य है कि तमाम कठिनाइयों के बाद भी हमारे देश के संविधान के अनुसार निर्धारित समय पर चुनाव होते रहे हैं और बिना किसी विवाद के सत्ता का हस्तानांतरण होता रहा है जिसका श्रेय स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और स्वतंत्रता के समय और उसके बाद के नेतृत्व को जाता है जिन्होंने लोकतंत्र की मर्यादाओं का पालन करते हुए देश की सम्विधान आधारित व्यवस्था को स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद के दशकों तक चलाते रहे और इस कारण देश में लोकतंत्र की जड़ें मजबूत हुई । पिछले सात दशकों में देश ने निश्चित रूप से कई मामलों में उल्लेखनीय सफलता पाई है। देश का विकास हुआ है इसमें कोई संदेह नहीं । इसके साथ ही देश का एक बहुत बड़ा वर्ग आर्थिक रूप से संपन्न हुआ है जिसके चलते विश्व भर में हमारे देश को एक उभरते हुई आर्थिक ताक़त के रूप में देखा जाने लगा है I

निःसंदेह इसका श्रेय देश चलाने वाली सभी सरकारों को जाता है लेकिन उसके साथ ही यह भी एक कटु सत्य है कि हमारा देश आज भी तमाम तरह की समस्याओं से जूझ रहा है और इन समस्याओं को दशकों तक हल न कर पाने की असफलता की पूरी जिम्मेदारी भी वर्तमान और पूर्व की सरकारों के हिस्से में आएगी । जिन क्षेत्रों में देश पछत्तर साल की स्वतंत्रता और स्वशासन के बाद भी दुनिया भर के अगड़े देशों की तुलना में कोसों पीछे है , यदि उनको गिनाया जाए तो सूंची बहुत बड़ी हो जाएगी । सबसे बड़ा दुर्भाग्य तो यह है कि आज भी देश में 80 करोड़ लोगों को भुखमरी से बचाने के लिए पाँच किलो अनाज देने की व्यवस्था सरकार को करनी पड़ रहीहै। इसी के साथ ऐसा लगता है कि देश की ध्वस्त पड़ी शिक्षा व्यवस्था और फटेहाल स्वास्थ्य और चिकित्सा प्रणाली की ओर तो किसी भी सरकार का ध्यान ही नहीं जाता कि यह भी कोई समस्या है । दुनिया का इतिहास गवाह है कि बिना पूर्ण रूप से शिक्षित हुए कोई भी देश आज तक आगे नहीं बढ़ पाया । यह स्पष्ट है कि अगर देश की शिक्षा व्यवस्था फटेहाल रहेगी तो कभी भी देश के नागरिकों को सम्मानजनक ढंग से जीवन जीने का अवसर नहीं मिल पाएगा । आज जिसके पास पैसा या जो अमीर है वह तो अपने बच्चों की पढ़ाई की व्यवस्था बड़े बड़े निजी स्कूलों में कर ले रहे लेकिन उनका क्या जिसके पास बच्चों को पढ़ाने के लिए इतना पैसा नहीं है कि वह अपने बच्चों को अच्छे स्कूलों में पढ़ा सके तो वह किस तरह से अपने बच्चों का भविष्य सँवार पाएंगे, इस प्रश्न का उत्तर देने वाला कोई नहीं है । इस दोहरी शिक्षा व्यवस्था ने जिसमें अमीरों के बच्चों के लिये पूर्ण सुसज्जित स्कूल और ग़रीबों के बच्चों के लिए फटेहाल स्कूल , ने देश का अब तक काफ़ी नुक़सान कर दिया है और पूरी की पूरी दो पीढ़ियाँ इस कुव्यवस्था के चलते देश के विकास में अपना योगदान दे पाने के काबिल ही नहीं हो पाई ।
इसी तरह सर्वत्र व्याप्त भ्रष्टाचार जिसके चलते आम जन का जीना दूभर है , सत्ताधारियों को ऐसा लगता है कि यह तो कोई समस्या है ही नहीं । सच तो यह है कि व्यवस्था में शीर्ष पर आज बैठे या पहले बैठ चुके सभी को यह अच्छी तरह से पता था कि किस प्रकार से भ्रष्टाचार रूपी दीमक देश को नीचे से ऊपर तक उसके प्रत्येक अंग को चाटे डाल रहीं है । लेकिन यह सब जानते हुए भी सत्ताधारियों द्वारा इन स्थितियों को बदलने के लिए कुछ नहीं किए जाने का सिर्फ़ और सिर्फ़ एक ही कारण समझ में आता है कि वह सभी स्वयं ही इस भ्रष्टाचार रूपी दरिया में नाक तक डूबे रहे हैं और उसी में गोते मारते रहे हैं तो यह लोग कैसे भ्रष्टाचार की विभीषिका में जलते देश को बचाते ।

हमारे देश को दुर्भाग्य रहा कि ग़रीबों के मसीहा होने का दावा कर- कर के कई नेता सत्ता सुख भोग कर परलोक सिधार गए लेकिन गरीब आज भी वहीं का वहीं खड़ा है और अब तो अधिकारिक तौर पर अस्सी करोड़ लोग हमारे देश में ऐसे हैं जिनको भुखमरी से बचाने की जुगत में सरकार उन्हें मुफ़्त अनाज देती जा रही है ।वास्तव में ग़रीबी हटाओ का नारा देकर सत्ता तो बहुतों ने ले ली लेकिन किसी भी सरकार या उसको चलाने वाले राजनीतिक दल और उसके नेता को यह बात शायद अभी भी समझ में नहीं आ रही या वह समझना नहीं चाहते कि ग़रीबी की समस्या से निजाद पाने के लिए ग़ैर बराबरी की शिक्षा जिसके चलते शिक्षा की ग़रीबी जन्म लेती है , ग़ैर बराबरी कि स्वास्थ्य व्यवस्था जिससे अमीर गरीब के बीच की खाई गहरी होती है को समाप्त करना होगा । इसी तरह गाँव और शहरों के बीच विद्यमान ग़ैर बराबरी की नागरिक सुविधाओं जैसे पानी , बिजली , सड़क , नाली , नाबदान , शौचालय युक्त आवास का अभाव ग़रीबी का एक सबसे बड़ा कारण है । इसी के साथ और सबसे बड़ी ग़रीबी की त्रासदी है ग़ैर बराबरी का न्याय जो हमारे देश में वह सर्फ़ अमीरों के लिए बना ही लगता है , गरीब के लिए तो वर्तमान न्याय व्यवस्था से न्याय पाना बहुत ही मुश्किल है । जब तक इन चारों असमानता के खम्भों को ज़मींदोज़ नहीं किया जाएगा तब तक देश से ग़रीबी हटाने की बात करना सिर्फ़ चुनावी नारा ही बना रहेगा ।

एक यथार्थ तो यह भी है कि लोकतांत्रिक प्रणाली में चुनावी व्यवस्था जब भ्रष्टाचार की शिकार हो जाए तो इस भ्रष्ट मार्ग पर चल कर सत्ता पर बैठने वाले बेईमान नहीं होंगे तो क्या होंगे , इसको जानने के लिए किसी विशेष ज्ञान की ज़रूरत नहीं है । यह सर्वत्र विदित है कि चुनाव जीतने के लिए झूट , फ़रेब का सहारा और जाति और धर्म के समीकरण बैठाने के साथ साथ करोड़ों करोड़ रुपयों का खर्च करना ही आज की राजनीति का दूसरा नाम है ।समय आ गया है कि आज की राजनीति के चारों पाए जाति , धर्म , काला धन और बाहुबल को काट कर ऐसी राजनीतिक व्यवस्था को स्थापित किया जाए जिसने सिर्फ़ जन हित सर्वोपरि हो और उसमें भ्रष्टाचार की कोई जगह ना हो । देश का हित इसी में है और इसमें विलम्ब के आगे गम्भीर दुष्परिणाम होने अवश्यम्भावी है ।

(विजय शंकर पांडे भारत सरकार के पूर्व सचिव हैं)

Share via

Get Newsletter

Advertisement