झूठ कौन बोल रहा है रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण या पूर्व रक्षा मंत्री ए के एंटनी

राजेन्द्र द्विवेदी

राफेल विमान की खरीद को लेकर राहुल गाँधी ने लोकसभा में केंद्र सरकार पर गंभीर आरोप लगाए। राहुल गांधी ने रक्षा मंत्री का नाम लेकर राफेल डील में कीमत बढ़ाने पर सवाल उठाते हुये खरीददारी में कमीशन खोरी का आरोप लगाया और प्रधानमंत्री से उसका जवाब मांगा । श्री गांधी के आरोप पर रक्षा मंत्री ने बयान दिया कि गोपनीयता के कारण राफेल विमान की कीमत नहीं बताई जा सकती है । उन्होने कहा कि 2008 में फ्रांस और भारत के बीच राफेल विमान की डील हुई थी और जिसमे राफेल सौदे में गोपनीयता की शर्त है । 2008 में जब डील हुई थी तो काँग्रेस की ही सरकार थी । इसलिए रक्षा सौदे में राफेल विमान की कीमत गोपनीयता के शर्त के कारण नहीं बताया जा सकता। उन्होने सौदे में किसी भी प्रकार की कमीशन से इंकार किया और राहुल गांधी से सबूत मांगे थे । भाजपा सांसदों ने राहुल गांधी के राफेल डील मामले पर लगाए गये आरोप पर लोकसभा में विशेषाधिकार की नोटिस भी दी है । प्रधानमंत्री ने राफेल डील पर चुप्पी साध रखी है और राहुल गांधी बार बार प्रधानमंत्री से जबाब मांग रहे है ।

लोकसभा में रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण के दिए गए बयान को पूर्व रक्षा मंत्री ए के एंटनी ने झूठा बताया है। उन्होंने कहा है कि राफेल सौदे में गोपनीयता की शर्त नहीं है। रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण झूठ बोल रही है। एंटनी ने कहा कि कांग्रेस सरकार में तकनीकी सहित प्रति विमान 526 करोड़ रूपये में खरीदने की बात थी। मोदी सरकार ने बिना तकनीकी प्रति विमान 1670 करोड़ रूपये में खरीदने का सौदा किया है। एंटनी ने ये भी आरोप लगाया कि जिस कंपनी को विमान बनाने का अनुभव नहीं है। उससे करार क्यों किया गया ? यूपीए सरकार की डील में 126 विमान खरीदने का प्रस्ताव था जिसमे केवल 18 विमान फ्रान्स में बनने थे और 106 विमान भारत में बनाने का सौदा हुआ था । एंटनी ने कहा फ्रान्स ने ऐसे ही विमान मिस्र और क़तर को कम कीमत में बेचे है । भारत ने इतनी अधिक कीमत में सौदा क्यो किया ?

पूर्व रक्षा मंत्री एंटनी ने कहा 2008 में राफेल विमान की खरीद के लिए 4 कम्पनिओं की निविदा आयी थी जिनमे 2 अमेरिका, 1 रूस, 1 स्वीडन शामिल थी । यूपीए सरकार ने इस काम में सरकारी कंपनी एचएएल को शामिल किया था लेकिन मोदी सरकार ने एचएएल को बाहर कर दिया और एक अनुभवहीन कंपनी को शामिल कर लिया । पुरानी डील रद्द होने से एचएएल के कई योग्य इंजीनियर को नौकरी से हाथ धोना पड़ा । एंटनी ने ये भी कहा कि विमान की कीमत अचानक 3 गुना बढ़ाने का कोई औचित्य नहीं है । विमान की कीमत छुपाने का कोई आधार नहीं है । एंटनी ने कहा 526 करोड़ रूपये में खरीदे जाने वाले विमान 1670 करोड़ रूपये में खरीदे जा रहे है। विमान बनाने वाली कंपनी ने अपनी सालाना रिपोर्ट में विमान की कीमत घोषित कर दिया है तो रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण इसे क्यो छुपा रही है ?

पूर्व रक्षा मंत्री ए के एंटनी बहुत ही ईमानदार नेताओ की श्रेणी में आते हैं देश के चंद बेदाग़ राजनेताओ में उनका नाम शामिल है। रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण भी ईमानदार छवि की नेता मानी जाती हैं। दोनों बयान देने वाले पूर्व और वर्तमान रक्षामंत्री ईमानदार है । प्रधानमंत्री ईमानदार हैं । राहुल गांधी भी ईमानदार हैं । लेकिन सब ईमानदार ही हैं तो 526 करोड़ रूपये की प्रतिविमान डील 1670 करोड़ रूपये में होने पर कोई न कोई झूठ जरूर बोल रहा है। देश के सवा सौ करोड़ जनता को भाजपा सरकार गुमराह कर रही है या राहुल फर्जी आरोप लगा कर देश को गुमराह कर रहे है । दोनों में से कोई न कोई झूठ तो जरूर बोल रहा है।

यह झूठ और सच का खेल 1986 में तत्कालीन राजीव गांधी सरकार में बोफोर्स डील के सौदे की याद को ताज़ा कर रहा है । तत्कालीन रक्षा मंत्री एवं पूर्व प्रधानमंत्री वी पी सिंह ने बोफोर्स में दलाली का राजीव गांधी सरकार पर सीधा आरोप लगाया था और 64 करोड़ रुपए दलाली की बात कही थी । बोफोर्स दलाली की कहानी वी पी सिंह चुनावी सभाओ में बड़े ही रोचक ढंग से उठाते थे और जेब से एक पर्ची निकाल कर जनता को दिखाते थे कि इसमे बोफोर्स दलालों का नाम है । वी पी सिंह दावा करते थे कि उनकी सरकार बनने पर बोफोर्स दलालों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही की जाएगी । वी पी सिंह के इन आरोपों का काँग्रेस की सरकार और संगठन लगातार साजिश करार देते हुये बोफोर्स में दलाली के आरोपो को इंकार करते रहे ।

साफ सुथरी छवि वाले वी पी सिंह के इस ड्रामेटिक अंदाज को जनता ने पूरा समर्थन दिया और 1989 के लोकसभा चुनाव में 415 अपार बहुमत पाने वाले राजीव गांधी के सांसदों की संख्या 1989 में घट कर 197 रह गई । जनता दल नेता के रूप में वी पी सिंह 145 सांसादों की संख्या को लेकेर भाजपा व अन्य गैर काँग्रेस दलों के साथ मिलकर केंद्र में सरकार बनाई । बोफोर्स पर जांच के आदेश हुये और आजतक बोफोर्स के दलालों का नाम जिस अंदाज में वी पी सिंह कहते थे उसके अनुसार अभी तक जनता के सामने नहीं आ पाया । मात्र 16 महीनो के अंतराल में मण्डल कमंडल विवाद में वी पी सिंह सरकार गिरी और 1991 में फिर से लोकसभा चुनाव हुये । इस चुनाव में राजीव गांधी जैसा नेता की हत्या हो गई और फिर से पी वी नरसिम्हा राव के नेत्रत्व में काँग्रेस की सरकार बनी । 1986 से लेकर 2018 तक तीन दशक के अधिक के बाद भी बोफोर्स का जिन्न अभी भी जिंदा है आज भी गैर काँग्रेस पार्टियां समय समय पर बोफोर्स में दलाली का आरोप गांधी नेहरू परिवार और काँग्रेस सरकार पर लगाते रहते हैं ।

राफेल डील का मुद्दा भी धीरे धीरे जनता में बोफोर्स की कहानी की तरह फैलता जा रहा हैं बस फर्क इतना है कि आरोप लगाने वाले वी पी सिंह जैसे कद्दावर और ईमानदार छवि के नेता काँग्रेस में नहीं है। राहुल गांधी निश्चित रूप से काँग्रेस पार्टी के सर्वमान्य नेता हैं लेकिन राफेल डील में कमीशबाजी का आरोप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर उस तरह विश्वसनीय नहीं हो पा रहा है जैसा वी पी सिंह द्वारा राजीव पर लगाए गये आरोप को विश्वसनीए माना जाता था । प्रधानमंत्री की छवि एक ईमानदार नेता के रूप में आज भी जनता के बीच बनी हुई है । लेकिन 526 करोड़ प्रति विमान की कीमत 1670 करोड़ प्रति विमान कैस हुई ये सवाल धीरे धीरे भाजपा सरकार के लिए मुसीबत बनता जा रहा है । राफेल डील में मोदी सरकार झूठ बोल रही है या फिर काँग्रेस गलत आरोप लगा रही है। सही तथ्य जनता को उच्च स्तरीय जांच और सौदे में हुई शर्तो को सार्वजनिक करने से ही हो सकता है । यह तो समय बतायागा कि राफेल डील बोफोर्स की कहानी दोहरा सकता है कि नहीं ।

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