शिवपाल के मोर्चे से अखिलेश की मुसीबत बढ़ी

राजेंद्र द्विवेदी

लखनऊ, सपा पार्टी में उपेक्षा के शिकार वरिष्ठ नेता शिवपाल यादव के द्वारा समाजवादी सेक्युलर मोर्चा बनाने से पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की मुसीबत बढ़ गयी है। जिस तरह से अखिलेश यादव मोर्चे के गठन के बाद बयान दिया है उससे लगता है कि उन्हें जमीनी हकीकत और शिवपाल के संगठनात्मक क्षमता की जानकारी नही है। सपा के संस्थापक सदस्यों में शिवपाल सिंह मुलायम सिंह यादव के बाद कार्यकर्ता के सबसे प्रिय नेता है। सपा पार्टी गठन के बाद 1993 एवं 2004 में सरकार में रही तो शिवपाल सिंह यादव सीधे कार्यकर्ताओं से जुड़े रहे। उत्तर प्रदेश का कोई ऐसा जनपद नही है जहां पर शिवपाल के मजबूत नेता, कार्यकर्ता न हो। लम्बी अर्से तक प्रदेश सगठन की बागडोर शिवपाल के हाथों मे रही। मुलायम सिंह राष्ट्रीय स्तर पर जादा समय दिया और उत्तर प्रदेश से कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद शिवपाल से होता रहा। अखिलेश यादव सरकार में रहते हुए जिस तरह से सपा पार्टी पर खर्चा किया मुलायम सिंह और शिवपाल को हासिये पर किया। सत्ता में रहते हुए जो समर्थन मिला और 2017 विधानसभा चुनाव परिणाम आया उससे अखिलेश जिन्दाबाद करने वाले नेताओं एवं कार्यकर्ताओं मे भी 2019 लोकसभा चुनाव को लेकर एक संशय पैदा हो गया है। जिस तरह से अखिलेश ने एक तरफा मायावती के सामने सरेण्डर किया है उससे स्वाभिमानी सपा नेता एवं कार्यकर्ता बहुत आह्त है। विकल्प हीनता के कारण मजबूरी में अखिलेश से जुड़े थे मोर्चा बनने के बाद फिर से सम्मान जनक राजनीति करने का अवसर मिल रहा है तो शिवपाल से जुड़ेगें। अखिलेश को लेकर मायावती ने जिस तरह से बयान दिया था कि अखिलेश अनुभवहीन है और 2 जून 1995 को स्टेट गेस्ट हाउस में जो घटना हुई थी उसमे अखिलेश बच्चे थे उनका कोई दोष नही है। पिता मुलायम सिंह और चाचा शिवपाल सिंह दोषी है। मायावती के बयान से ही लग गया था कि अगर सपा को बसपा से समझौता करना है तो पिता और चाचा पार्टी में नही रहेंगे। राजनीतिक परिस्थितियां और घटनाक्रम यह बता रहे है कि कार्यकर्ताओं का दबाव सपा को एक जुट रखने वाले नेताओं का सुझाव से अखिलेश यादव ने चाचा शिवपाल को संगठन से जोड़ने और पिता को सम्मान देने के लिए मन बनाया था लेकिन बसपा समझौते के कारण अमलीजामा नही पहना सकें। एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि बसपा के समझौते को लेकर अखिलेश यादव पूरी तरह मायावती के सुझावों पर अमल कर रहे है। चंद्र जमीन विहीन सलाहकारों से घिरे होने का आरोप भी सपा मुखिया पर लग रहा है। सपा के वरिष्ठ नेता के अनुसार पार्टी मुख्यालय पर चंद्र नेताओं का कब्जा सा हो गया है। वरिष्ठ नेताओं को सम्मान नही मिल रहा है और न ही अखिलेश सही बातों को सुनना चाहते है। ऐसे में शिवपाल का मोर्चा अखिलेश पर समय के साथ मुसीबत बढ़ाता जायेगा। सपा गठन के बाद से जिस तरह से मुलायम सिंह यादव ने पार्टी को मजबूत करके एक सफल राजनीतिज्ञ की तरह 1995, 2003 तथा 2012 में प्रदेश में सरकार बनायी। केन्द्र में तीसरे मोर्चे के सरकार में रक्षामंत्री रहे। आज सपा में हासिये पर जाना और भगवती सिंह के जन्म दिन पर अपनी पीड़ा का इजहार करना कि जिन्दा रहते सम्मान नही मिल रहा है लगता है मेरे मरने के बाद सम्मान मिलेगा। एक पिता के रूप में सपा पार्टी के संस्थापक के रूप में और देश के बड़े नेता के रूप में मुलायम सिंह का यह बयान विरोधियों को भी हिला दिया है। इस बयान के बाद भी अखिलेश यादव के द्वारा मुलायम सिंह के सम्मान में कोई पहल न करना सपा के कार्यकर्ताओं और नेताओं को खल रहा है। सपा के वरिष्ठ नेता और अखिलेश के करीबी एक नेता की पीड़ा थी कि राजनीति कर रहा हूं राजनीति करना मजबूरी है सपा के अलावा दूसरी जगह राजनीति कर नही सकता। इसीलिए दिल पर पत्थर रखकर अखिलेश के साथ जुड़ा हुं और मुलायम एवं शिवपाल जैसे नेताओं की उपेक्षा देख रहा हूं। जिस तरह से सपा कार्यालय पर विपक्ष से ज्यादा शिवपाल की गतिविधियों पर चर्चा होती है और अखिलेश मौन होकर सुनते है वह भी सपा के लिए सुखद नही है। कार्यकर्ताओं की पीड़ा राजनीतिक माहौल और आने वाले दिनों में जिस तरह से 2019 में चुनाव को लेकर घटना घटने की सम्भावनायें है उससे स्पष्ट दिखायी दे रहा है कि शिवपाल का मोर्चा अखिलेश पर भारी पड़ने जा रहा है। सपा बसपा समझौते के बाद जिन बड़े और प्रभावशाली नेताओं के टिकट नही मिलेगा वह सभी मोर्चे शामिल होंगे। यह निश्चित है कि समझौते में जिन सीटों पर सपा लड़गी उन पर बसपा के दावेदार भी मोर्चे का दामन थाम सकते है। क्योंकि सपा एवं बसपा नेताओं की राजनीति में मुस्लिम मतदाता एक महत्वपूर्ण फैक्टर है जिसके कारण भाजपा में जाना ऐसे नेताओं के लिए आसान नही है। जिन सीटों पर बसपा लड़ेगी उन सीटों पर सपा के दावेदार निश्चित रूप से मोर्चे में शामिल होंगे। सपा के लोकसभा चुनाव की तैयारी कर रहे है वरिष्ठ नेता का कहना है कि 2014 में मेरे संसदीय सीट से बसपा दूसरे स्थान पर रही है जैसी उम्मीद है समझौते में सीट बसपा को जायेगी। मै भी राजनीति कर रहा हूं अपनी राजनीतिक धरातल को अपने विरोधी को कैसे सौप दूंगा। जिस पार्टी के खिलाफ पिछले 20 वर्षो से लड़ाई लड़ रहा हूं उस पार्टी के नेता को सपा कार्यकत्र्ता और मेरे समर्थक कैसे चुनाव में मद्द करेंगे। ऐसे नेताओं को मोर्चा का गठन करके शिवपाल ने एक अवसर प्रदान किया है। सत्ता में रहते हुए जिस तरह से अखिलेश जिन्दाबाद हो रहे थे सत्ता से बाहर होने के बाद वैसा समर्थन मुलायम और शिवपाल के खिलाफ अखिलेश को नही मिलेगा। उनका भ्रम आने वाले दिनों में टूट जायेगा।

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