अर्बन मिरर संपादकीय
कल प्रधान मंत्री ने दिल्ली में झाड़ू लगाकर पुनः स्वच्छता अभियान की शुरूवात की। ऐसा ही दो अक्टूबर २०१४ को भी काफ़ी प्रचार प्रसार के साथ देश भर में स्वच्छता अभियान की शुरूवात की गई थी । चार साल बाद देश कितना स्वच्छ हुआ यह तो जनता के सामने है। काम अच्छा था इसलिए इसकी प्रशंसा की गई लेकिन प्रश्न यह उठता है कि क्या जो लक्ष निर्धारित किए गए थे क्या वह प्राप्त हुए और क्या २ अक्टूबर २०१९ तक देश पूर्ण रूप से साफ़ सुथरा हो पाएगा या नहीं। आज के हालात को देखते हुए तो यही लगता है कि देश निर्धारित लक्ष्यों से मीलों दूर है । ऐसे हालात में सवाल यह उठता है कि अभियान शुरू होने से पहले क्या समस्या के सभी पहलुओं पर गम्भीरता से सोंच कर अभियान की रूपरेखा तैयार की गयी या नहीं और क्या अभियान को प्रभावी रूप से लागू करने के लिए सभी व्यवस्था की गई या नहीं। इस अभियान से क़रीबी से जुड़े लोगों का मानना है कि इन दोनो ही दृष्टि से तैयारी पूरी तरह से नाकाफ़ी थी । यह सभी को पता है कि देश के ग्रामीण इलाक़ों में नागरिक सुविधाओं का पूर्ण अभाव है क्यों कि गाँव में नगर्रीय सुविधा देने के लिए कभी कुछ भी नहीं किया गया । इसलिए गाँव तो इस अभियान से अछूते ही रहते। रही बात गाँव में सौचालय निर्माण की तो उसका तो भगवान ही मालिक है। जो सरकार ७० साल में पीने का पानी मुहैया करा पाने में फ़ेल रहीं वह शौचालयों को साफ़ रखने के लिए आवश्यक पानी का इनतेजाम कहाँ से कर सकती थी । परिणाम सबके सामने है । तमाम ताम झाम से प्रधान मंत्री के द्वारा ख़ुद झाड़ू लगाकर शुरू किया गया अभियान भी उसी हश्र को प्राप्त हुआ जो हश्र स्वर्गीय राजीव गांधी पूर्व प्रधान मंत्री के द्वारा साल १९८६ में शान शौक़त के साथ शुरू किए गए गंगा सफ़ाई के लिए वाराणसी से शुरू किए गए गंगा ऐक्शन प्लान का हुआ। देश को इन आधे अधूरे ढंग से शुरू किए जाने वाले प्रयासों से बचना चाहिए ।