मध्य प्रदेश विधानसभा- 2018 यूरीड मीडिया सर्वे- ज्योतिराव ही दे सकते हैं शिवराज को चुनौती लोकप्रियता में शिवराज मोदी पर भारी

राजेन्द्र द्विवेदी

यूरीड मीडिया टीम के साथ मध्य प्रदेश के 19 जनपदों (मुरैना, ग्वालियर, दतिया, शिवपुरी, गुना, अशोकनगर, विदिशा, भोपाल, सीहोर, राजगढ़, आगरमालवा, शाजापुर, देवास, खंडवा, बुरहानपुर, खरगोन, बड़वानी, इंदौर और उज्जैन) का दौरा करके मतदाताओं से काँग्रेस, भाजपा व अन्य दलों के बारे में राय जानी गयी। मतदाताओं के अनुसार शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता मोदी से भारी हैं। शिवराज को सीधी चुनौती ज्योतिराव सिंधिया के नेतृत्व में ही कांग्रेस दे सकती हैं। मतदाताओं से हुई बातचीत में सबसे अधिक रोचक बातें सामने आयी उनमें यह हैं कि 15 वर्ष से सत्ता से बाहर होने के बाद भी दिग्विजय सिंह के प्रति मतदाताओं की नाराजगी आज भी बरकरार हैं। कांग्रेस समर्थक हों या भाजपा के समर्थक दोनों इस बात को कहने में परहेज नहीं करते हैं कि दिग्विजय सिंह के मुख्यमंत्री के 10 वर्ष के कार्यकाल में मध्य प्रदेश का कोई विकास नहीं हुआ। कांग्रेस कार्यकर्ता पार्टी की दुर्दशा के लिए आज भी दिग्विजय सिंह को ज़िम्मेदार ठहराते हैं उनका कहना ही कि दिग्विजय ने अर्जुन सिंह को कमजोर करने के लिए मध्य प्रदेश में कांग्रेस पार्टी को ही खत्म कर दिया। आम मतदाता भी दिग्विजय सिंह के प्रति नकारात्मक सोच रखते हैं। उनका कहना है कि विधानसभा चुनाव में ज्योतिराव सिंधिया को मुख्यमंत्री के रूप में घोषित करके अच्छे प्रत्याशी को टिकट दे तो शिवराज सिंह के लिए चौथी बार सरकार बनाना कठिन हो सकता है ? प्रदेश अध्यक्ष के रूप में कमलनाथ को भी मध्य प्रदेश की जनता बहुत गंभीरता से नहीं लेती और न ही उन्हें गरीबों, किसानो का हितैषी मानती है। आम मतदाता किसान, युवा कोई भी हो सभी कांग्रेस के बारे में एक ही सोच और राय रखते हैं कि ज्योतिराज सिंधिया को कमलनाथ और दिग्विजय मुख्यमंत्री प्रत्याशी घोषित नहीं होने देंगे।

शिवराज सरकार से नाराज़ किसान, युवा, महिला सभी दिग्विजय और कमलनाथ के कारण कांग्रेस पर भरोसा नहीं कर पा रहे हैं। दिग्विजय सिंह के गृह राघौगढ विधानसभा से उनके बेटे जयवर्धन सिंह विधायक हैं और तीन चौथाई मतों से चुनाव जीते हैं लेकिन राघौगढ के आस पास चार विधान सभा क्षेत्र आते है जिनमें 2 विधानसभा में भाजपा का कब्ज़ा है। बामोरी विधानसभा के राजपूतों में दिग्विजय सिंह के प्रति समर्थन दिखाई दिया लेकिन वह भी दिग्विजय के इस बयान से नाराज़ थे कि “उनके भाषण से कांग्रेस का वोट कट जाता हैं” (दिग्विजय सिंह के बेटे विधयक जयवर्धन भी पिता के बयान को मज़ाक में दिया गया बयान मानते हैं। राघौगढ अपने आवास पर कार्यकर्ताओं से घिरे विधायक जयवर्धन सिंह के चेहरे पर भी चुनावी तनाव दिखाई दे रहा था।)

कांग्रेस के नेता राहुल गाँधी राफेल डील में घोटाला और उधोगपतियों को लाभ पहुंचाने का आरोप तथा शिवराज सरकार की नाकामियों को लेकर आक्रामक बयान जरूर दे रहे हैं लेकिन राहुल गाँधी के बयानों की जानकारी ग्रामीण क्षेत्र के मतदातों तक नहीं पाहुची हैं। कांग्रेस का संगठनात्मक ढांचा बहुत कमजोर है। मोदी और शिवराज सरकार के जनविरोधी कांग्रेस के आरोप भी जनता तक नहीं पहुंच रहे हैं। इसलिए कांग्रेस विकल्पहीनता के कारण विकल्प बन सकती हैं। कांग्रेस ने शिवराज सरकार के खिलाफ जनता में कोई आंदोलन नहीं किया है। जो किसान व अन्य आंदोलन हुए हैं वह स्वतः हुए हैं कांग्रेस ने केवल समर्थन दिया है। नाराज़ किसान, मजदुर, युवा, दलित, सवर्ण आज भी कांग्रेस के प्रति केवल भाजपा के नाराजगी के कारण जुड़ते दिखाई दे रहे हैं। पिछले चुनाव में कांग्रेस ने जिन प्रत्याशियों को मैदान में उतारा था उनमे कई मजबूत प्रत्याशी ऐसे है जो कांग्रेस नेतृत्व उपेक्षा के कारण उदासीन हैं और भाजपा के संपर्क में भी बताये जा रहे है। मतदाताओं की राय से कांग्रेस अगर बेहतर प्रत्याशी और ज्योतिराव को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर दे तो शिवराज सिंह को कड़ी चुनौती मिल सकती हैं। कांग्रेस कार्यकर्ता इस बात से खुश हैं कि बसपा से समझौता नहीं हुआ। बसपा के बारे में मतदाताओं की धारणा यही है कि ये टिकट बेचने वाली पार्टी हैं। पैसे वालों को टिकट देती है और पैसा देकर टिकट लाने वाले बसपा के अधिकांश प्रत्याशी भी दूसरे दलों से चुनाव में सौदा कर लेते हैं। कुछ ही प्रत्याशी जो दूसरे दलों विधायक रहे या टिकट के प्रबल दावेदार थे टिकट न मिलने से बसपा प्रत्याशी बनते है वह जरूर लड़ते है इन्ही में से एक दो प्रत्याशी बसपा से विधायक बन जाते है। अभी तक बसपा के प्रत्याशी के नामों को लेकर चर्चा हैं उनमें सभी पैसे वाले ही हैं।

सर्वे में भाजपा के बारे में मतदाताओं की राय दिखाई दी उसके अनुसार देश में जहाँ मोदी के नाम पर चुनाव लड़े जा रहे हैं । कार्यकर्ता से लेकर विधायक, सांसद, संगठन के बड़े बड़े नेता जनता में मोदी चालीसा पढ़ते हैं। मोदी के नाम पर ही प्रदेश और केंद्र सरकार की उपलब्धियों का गुणगान करते हैं वहीं मध्यप्रदेश एक ऐसा राज्य है जहाँ पर मुख्यामंत्री शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बहुत अधिक हैं। शिवराज ने अपने डेढ़ दशक के कार्यकाल में मध्य प्रदेश में गरीबों और छोटे किसानों में ऐसी पहचान बनाई हैं जिसका मुकाबला करना कांग्रेस के किसी भी नेता के लिए आसान नहीं दिखाई दे रहा हैं । गरीबों को मूलभूत सुविधा बिजली, आवास, खाद्यान, पानी और स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करा दी हैं जिससे शिवराज सिंह की एक अलग पहचान मसीहा के रूप गरीबों में बन गयी हैं। गरीब केवल शिवराज सिंह चौहान के रूप में मुख्यमंत्री और मामा जी को ही हितैसी मानते हैं। भाजपा विधयकों के प्रति जबरदस्त आक्रोश हैं। गरीब हो या अमीर शिवराज की सादगी की बड़ाई करते हैं विरोधी भी ये मानते हैं की शिवराज सिंह का जनता से सीधा संवाद अन्य नेताओ की तुलना में मुख्यमंत्री रहते हुए भी बहुत अधिक है। मुख्यमंत्री की कुर्सी का अहंकार जनता के बीच दिखाई नहीं देता। जबकि भाजपा के विधायक के अहंकार मुख्यमंत्री से भी ज्यादा दिखाई देते हैं। जिस तरह से शिवराज सिंह चौहान डेढ़ दशक से तीन बार लगातार चुनाव जीत रहे हैं । चौथी बार भी शिवराज के चुनावी कौशल को पराजित करना कांग्रेस के लिए बहुत बड़ी चुनौती हैं । मध्य प्रदेश में डेढ़ दशक में शिवराज ने कांग्रेस के युवाओं एवं जुझारू कार्यकताओं को भी किसी न किसी तरीके से भाजपा से जोड़ने में कामयाब रहे है। बूथ से लेकर मंडल, विधानसभा व शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों तक शिवराज का चुनाव प्रबंधन बहुत ही सुनियोजित दिखाई दिया। गांव में कांग्रेस समर्थक भी शिवराज सरकार के बिजली, खाद्यान योजना, आवास, पानी सड़क आदि के बारे में सकारात्मक सोच रखते हैं। शिकायत सबसे ज्यादा रोज़गार और महगाई को लेकर हैं।

मध्यम श्रेणी मतदाता महगाई और बेरोज़गारी से सबसे ज्यादा अधिक परेशान हैं। लेकिन इन मध्यम श्रेणी के मतदाताओं को भी 200 रूपये प्रतिमाह बिजली, 1 रुपया किलो अनाज, साइकिल, स्यास्थ्य सुविधा मिलने से शिवराज सरकार के प्रति बहुत ज्यादा आक्रामक नहीं है। किसानो में भी शिवराज ने दो वर्ग पैदा कर दिए हैं छोटे किसानो को जहाँ समर्थन मूल्य से अधिक थोड़ी-थोड़ी धनराशि देकर भाजपा के समर्थन में खड़ा कर लिया है वही पर बड़े किसान पैदावार का उचित मूल्य न मिलने से भाजपा सरकार से नाराज़ हैं। सबसे अधिक नाराजगी भाजपा के विधायकों के प्रति है। विधायक के नाम पर मतदाता नाराजगी व्यक्त करते हैं वही शिवराज के कार्यशैली का समर्थन करते है। मोदी और शिवराज में कौन गरीबों का हितैषी हैं इन सवालों पर शिवराज का पलड़ा भारी हैं। मोदी के बारे में सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं होती हैं ।
सर्वे में अगर इन 19 जनपदों से जुड़े मतदाताओं की राय का विश्लेषण करें तो यह स्पष्ट दिखाई दे रहा कि शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ बहुत अधिक सत्ता विरोधी लहर नहीं है । एससी/एसटी एक्ट को लेकर सवर्ण नाराज़ तो है लेकिन काँग्रेस के समर्थन में भी नहीं खड़े हैं । विधायकों के प्रति जनता में जबर्दस्त नाराजगी हैं । वर्तमान विधायकों को प्रत्याशी बनाया गया तो काँग्रेस को लाभ मिलेगा । दिग्विजय, कमलनाथ और ज्योतिराव सिंधिया के बीच आपसी मतभेद भी जनता के बीच चर्चा के विषय बने हुये हैं।
सर्वे के समय तक प्रत्याशियों के नामों की सूची जारी नहीं हुई थी। जिसके कारण मतदाताओं की प्रतिक्रिया प्रत्याशियों के नामों को लेकर अलग अलग होती रही। मध्य प्रदेश में 230 विधानसभा सीटें हैं जिनमें 35 अनुसूचित जाति और 47 अनुसूचित जान जाति के लिए आरक्षित हैं। 148 अनारक्षित सीटें हैं। 2003 से लगातार भारतीय जनता पार्टी की सरकार हैं 2003 में भाजपा को 173, 2008 में 143 और 2013 में 164 सीटें मिली थी जबकि कांग्रेस 2003 में 38, 2008 में 71 और 2013 में 58 सीटें मिली थी। मतप्रतिशत में भाजपा और कांग्रेस के बीच 8-10 प्रतिशत का अंतर होता हैं लेकिन सीटों में 100 से लेकर 125 सीटों का अंतर आ जाता हैं। भाजपा को 2003 में 42.5 , 2008 में 36.81 और 2013 में 44.87 प्रतिशत मत मिले थे जबकि कांग्रेस को इन चुनाव में क्रमशा 2003 में 31.61, 2008 में 36.04 और 2013 में 36.38 प्रतिशत मत मिले। 1998 में कांग्रेस को 40.63 मत मिले थे और 172 सीटें मिली थी जबकि भाजपा 39.00 प्रतिशत मत पा कर 139 सीटें पायी थी। 1998 में मध्य प्रदेश का विभाजन नहीं हुआ था और विधानसभा की कुल 320 सीटें थी। सर्वे में मतदाता की राय की वास्तविक स्थिति प्रत्याशियों के चयन के बाद ही स्पष्ट होने लगेगी क्योकि प्रत्याशी बहुत ही महत्वपूर्ण है।

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