अर्बन मीरर समवाददाता
नई दिल्ली, 9 नवंबर: लोक गठबंधन पार्टी (एलजीपी) ने आज कहा कि उच्च मूल्य की मुद्रा के नोटबंदी के दो साल के बाद भी, ग्रामीण भारत को अभी भी इसके विनाशकारी प्रभाव का सामना करना पड़ रहा है। एलजीपी ने कहा कि सरकार के इस निर्णय ने उस समय प्रचलन में रही 86% मुद्रा को अवैध कर दिया था जिससे ग्रामीण कृषि मजदूरी बुरी तरह प्रभावित हुई थी और किसानों की सौदा शक्ति में तेजी से गिरावट आई थी, जो कि अभी भी जारी है।
पार्टी के प्रवक्ता ने शुक्रवार को यहां कहा कि नोटबंदी के माध्यम से काले धन को खत्म करने की एनडीए सरकार का लंबा दावा पूरी तरह विफल रहा है, किसान इस नोटबंदी की समस्या के नीचे आज भी पिस रहे हैं और चिल्ला रहे हैं। 8 नवंबर, 2016 को गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों के लिए काले दिन के रूप में कहा जाए गा क्योंकि वे एनडीए सरकार के फैसले के सबसे बुरे पीड़ित थे। प्रवक्ता ने कहा कि ग्रामीण भारत में संकट बढ़ गया है और अभी भी इसमें कोई कमी नहीं है। प्रवक्ता ने कहा कि किसान और ग्रामीण मज़दूर अभी भी नाखुश हैं और 201 9 के लोकसभा चुनावों में उनका असंतोष एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
प्रवक्ता ने आगे कहा कि पैदावार की खरीद की कीमतों को बढ़ाकर किसानों की आय को दोगुना करने की सरकार की योजना भी दोषपूर्ण योजना रही और प्रणाली में भारी भ्रष्टाचार के कारण सकारात्मक नतीजे पैदा करने की उसकी कोई संभावना नहीं है। प्रवक्ता ने कहा कि कृषि और गैर-कृषि ग्रामीण मजदूरी के बीच अनुपात में वृद्धि हुई है, मुख्य रूप से ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम की वजह से, लेकिन 2106 में मुद्रा प्रतिबंध से प्रतिकूल गिरावट ने लोगों को मारा। प्रवक्ता ने कहा कि इसके अलावा 2014 और 2015 में सूखे ने किसानों की समस्याओं में और भी दिक्कतों को जोड़ा है, और कहा कि नोटबंदी ने मजदूरी को और भी अधिक मार दिया था। प्रवक्ता ने कहा कि मीडिया रिपोर्ट से संकेत मिलता है कि नोटबंदी के बाद कृषि अपेक्षाकृत और भी अधिक अलाभकरी हो गई है। प्रवक्ता ने कहा कि खाद्य पदार्थों मैं मुद्रास्फीति ने गांवों में गरीब लोगों को और प्रभावित किया है। एलजीपी ने कहा कि किसानों की सौदा शक्ति हमेशा कम थी, लेकिन नोटबंदी ने इसे और बढ़ाया।