अर्बन मीरर समवाददाता
लखनऊ / 2019 लोकसभा चुनाव को लेकर निगाहे सपा,बसपा गठबन्धन पर लगी हुई है। 2 जून 1995 की घटना के बाद समाजवादी पार्टी के नेता एवं कार्यकर्ता लगातार बसपा से ही राजनीतिक संघर्ष करते आ रहे है। बसपा ने 2007 से 2012 में सपा सरकार के खिलाफ अभियान चलाकर बहुमत सरकार बनायी थी तो 2012 में सपा ने बसपा के खिलाफ आंदोलन करके पूर्ण बहुमत की सरकार बनायी। दोनों सरकारों में एक दूसरे पार्टी के कार्यकत्र्ताओं को राजनीतिक रूप से दबाने का प्रयास भी किया गया मुकदमे दर्ज कराये गये। 1995 के बाद पंचायतों एवं शहरी निकायों के पांच चुनाव 1995, 2000, 2005, 2010 और 2015 हो चुके है पंचायत की इन चुनाव में सपा और बसपा ही जमीन में लड़ते आ रहे है। ग्राम पंचायत से लेकर शहरी क्षेत्र में राजनीति सपा और बसपा के बीच बटी हुई थी भाजपा और कांग्रेस दोनों राजनीतिक रूप से कमजोर थे। 2014 लोकसभा चुनाव में राजनीतिक परिस्थितियां बदली। नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी को अप्रत्याशित सफलता मिली और 80 में 73 भाजपा सांसद चुने गये। 2014 चुनाव में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस अपने परिवारिक सीटों तक ही समिति होकर रह गयी। सपा को आजमगढ़ से मुलायम सिंह कन्नौज से डिम्पल यादव, बदायूं से धर्मेन्द्र यादव, मैनपुरी से तेज प्रताप यादव और फिरोजबाद से अक्षय यादव सांसद चुने गये। पांचो सपा सीटे मुलायम परिवार से ही जुड़ी है। कांग्रेस रायबरेली और अमेठी मां सोनिया गांधी और बेटा राहुल गांधी की सीट तक सिमट तक रह गयी। बसपा का खाता भी नही खुला। 2017 विधानसभा चुनाव में भी मोदी लहर चली और तीन चैथाई 325 सीटें भाजपा को मिली। योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश की कमान सौंपी गयी। भाजपा के 2014 और 2017 के प्रभाव को देखते हुए गैर भाजपा दलों की चिन्ता बढ़ गयी और धुर विरोधी सपा, बसपा एक मंच पर आने के लिए मजबूर हो गये। 2 जून 1995 की घटना को मायावती ने यह कहकर भुला दिया जिस समय यह घटना हुई थी अखिलेश यादव बच्चे थे और इनका कोई दोष नही है। 2 जून 1995 की घटना वाली मुलायम की सपा और थी तथा 2017 में अखिलेश यादव की सपा मुलायम की सपा से अलग है। मायावती की पहल के बाद अखिलेश यादव ने आगे बढ़कर मायावती के आवास पर पहंुचे और भाजपा से लड़ने के लिए संयुक्त रूप से तैयारी करने की सहमति दी। उपचुनाव में मायावती और अखिलेश की नजदीकियों का परिणाम भी दिखाई दिया। उपचुनाव में गोरखपुर,फुलपुर और कैराना लोकसभा सीटों पर गैर भाजपा को सफलता मिली और तीनो सांसद जिनमें दो सपा और एक रालोद के चुने गये।
उपचुनाव के परिणाम से उत्साहित सपा, बसपा, कांग्रेस तथा अन्य दलों को लेकर महागठबन्धन की बात चल रही है लेकिन राजनीतिक हालात है और मायावती एवं अखिलेश की तरफ से गठबन्धन करने की बात बार-बार दोहरायी जा रही है। यह माना भी जा रहा है कि सी.बी.आई. के कमजोर पड़ने से देश में विरोधी दल पर जांच का भय खत्म हुआ है गठबन्धन की चर्चा होती थी तो एक बार जरूर उठती थी कांग्रेस की तरह भाजपा भी सपा, बसपा पर सी.बी.आई. का जांच का डर दिखाकर गठबन्धन नही होने देगीं। लेकिन सी.बी.आई. आरोपों के घेरे में आने के बाद सपा बसपा की जांच के नाम पर गठबन्धन को रोकने का दबाव भी कमजोर हो गया है। ऐसे में मायावती औरअखिलेश की बीच 2019 का गठबन्धन तय माना जा रहा है। लेकिन एक सवाल राजनीतिक क्षेत्र में और सपा तथा बसपा कार्यकत्र्ताओं के मन में जरूर उठ रहा है कि आखिर 2019 लोकसभा चुनाव में सपा एंव बसपा के बीच समझौता होता है लेकिन 2022 में उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री चेहरा कौन होगा। यह माना जा रहा है कि अखिलेश यादव जिस तरह से मायावती को अधिक सीट देकर भी समझौता करने की वकालत कर रहे है उससे यही लग रहा है उत्तरप्रदेश में भी आने वाले दिनों में छत्तीसगढ़ का फार्मूला अपनाया जायेगा। छत्तीसगढ़ में मायावती ने योगी से समझौता करके योगी को छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री चेहरा घोषित किया है तो योगी ने 2019 में मायावती को प्रधानमंत्री पद का दावेदार बताया है और मायावती के नेतृत्व में तीसरे मोर्चे की केन्द्र में सरकार बनाया जाने का समर्थन किया है। क्यां यही फार्मूला उत्तर प्रदेश में लागू होगा? अखिलेश यादव मायावती को प्रधानमंत्रीका दावेदार बताते हुए गठबन्धन करेंगे और मायावती 2022 में अखिलेश यादव को सी.एम. के रूपमें समर्थन देने की बात स्वीकार करेंगी। लोकसभा और विधानसभा में सीटों का बंटवारा कैसे होगा। सपा और बसपा के कार्यकर्ता जो 1995 से लेकर 2017 तक लगातार राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई लड़ते रहे उनमे ताल-मेल कैसे होगा यह सवाल गठबन्धन को लेकर उठ रहे है लेकिन जिस तरह से मायावती का राजनीतिक चरित्र का इतिहास रहा उसे देखते हुए तत्कालीक लाभ और बसपा के वजूद को बच़ाने के लिए छत्तीसगढ़ का फार्मूला पर सहमति दे सकती है लेकिन 2019 की यह सहमति 2022 तक मायावती कायम रख पायेगी? दूसरा क्या अखिलेश यादव मायावती को प्रधानमंत्री का चेहरा घोषित करके राहुल गांधी से दूरिया बनाएगें यह निश्चिति है जब मायावती प्रधानमंत्री का चेहरा बनकर अखिलेश के साथ गठबन्धन करेंगी तो कांग्रेस किसी भी हालत में सपा, बसपा गठबन्धन में शामिल नही होगी।