
पूर्व आईएएस अधिकारी वी एस पांडे और इतिहासकार एवं स्वतंत्र लेखिका डॉ स्मिता पांडे का कहना है कि वर्तमान में पाकिस्तान विघटन के गंभीर खतरे का सामना कर रहा है और लगभग गुमनामी के कगार पर है। पाकिस्तान के आख्यान का दुर्भाग्यपूर्ण हिस्सा यह है कि वे आज भी दीवार पर लिखे शब्दों को पढ़ने में विफल रहे हैं और सही रास्ते पर चलने को तैयार नहीं हैं। पाकिस्तान की सत्ता को यह स्वीकार करना चाहिए कि भारत के दुनिया के लगभग सभी मुस्लिम बहुल देशों के साथ बेहद सौहार्दपूर्ण संबंध हैं- इसलिए भारत जैसे शांतिपूर्ण राष्ट्र के प्रति उनकी शत्रुता में धर्म को हथियार नहीं बनाया जाना चाहिए, क्योंकि भारत का सभ्यतागत चरित्र ” सर्व धर्म सद्भाव” है।
“शांति बल से नहीं कायम की जा सकती; इसे केवल समझदारी से हासिल किया जा सकता हैI” आइंस्टीन की यह बात वर्तमान परिदृश्य में भी लागू होती है। हमारे पड़ोसी के साथ युद्ध अभी फिलहाल रुका हुआ है। धर्म के संकीर्ण एकांतिक आधार पर जन्मा यह राष्ट्र अपने सत्तर साल के इतिहास में धर्मशास्त्रियों द्वारा नहीं, बल्कि सेना के वर्दीधारी व्यक्तियों द्वारा शासित रहा है, जो सत्ता का दोहन करते रहे हैं, झूठ बोलकर और युद्धोन्माद में लिप्त होकर लोगों को धोखा देते रहे हैं और करोड़ों लोगों को गरीबी , अशिक्षा की स्थिति में रखे हुए हैं। यह जरूर है की दिखने के लिए कुछ वर्षों तक राजनीतिक भी सत्ता में रहे हैं लेकिन वह भी सेनापतियों के द्वारा चयनित के रूप में सत्ता में रहे हैं, और ऐसे समय में रिमोट कंट्रोल हमेशा वर्दीधारी व्यक्तियों के हाथों में ही रहता है।
इन परिस्थितिओं के चलते पड़ोस में एक अभूतपूर्व भयावह स्थिति पैदा हो गई है, जहां आम लोगों द्वारा सेना के जनरलों को “जरनैल ” के नाम से पुकारा जाता है, जहाँ उन्हें सत्ता पर अपनी पकड़ को वैध बनाने के लिए बार-बार भारत के साथ युद्ध जैसी स्थिति का निर्माण करना पड़ता है। उनकी सभी घरेलू और विदेशी नीतियां “भारत है दुश्मन” के इर्द-गिर्द केंद्रित रही हैं। भारत को एक दुश्मन के रूप में बदनाम करने वाली इस बयानबाजी ने पाकिस्तान को इतनी गहरी खाई में धकेल दिया है कि आज वह टूटने के कगार पर है। बलूच प्रांत के प्रमुख नेताओं द्वारा स्वतंत्रता की वर्तमान घोषणा, जिसमें पाकिस्तानी भूमि का लगभग चौवालीस प्रतिशत हिस्सा शामिल है, ने उस देश के लिए अस्तित्व का संकट पैदा कर दिया है । जो देश “दो राष्ट्र” सिद्धांत से पैदा हुआ था – जो कि एक पूरी तरह से झूठी कहानी थी , जिसे इसके निर्माण के तीन दशकों के भीतर ही पूर्व पाकिस्तान के बॉंग्लादेश बनते ही नकार दिया गया।
देश के कई प्रमुख विचारकों जिनमे मौलाना अबुल कलाम आज़ाद शामिल थे , उन्होंने इसकी भविष्यवाणी पहले ही की थी। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने अप्रैल 1946 में लाहौर की उर्दू पत्रिका चट्टान के लिए पत्रकार शोरिश कश्मीरी को दिए एक साक्षात्कार में कुछ चौंकाने वाली भविष्यवाणियां की थीं। यह वह समय था जब कैबिनेट मिशन दिल्ली और शिमला में अपनी कार्यवाही कर रहा था। मौलाना आज़ाद ने साक्षात्कार के दौरान कुछ भविष्यवाणियां कीं, जिसमें उन्होंने कहा कि धार्मिक संघर्ष पाकिस्तान को तोड़ देगा और इसका पूर्वी हिस्सा अपना भविष्य खुद बनाएगा। उन्होंने यहां तक कहा था कि पाकिस्तान के अक्षम शासक सैन्य शासन का मार्ग प्रशस्त करेंगे। नफरत में कल्पित कोई भी इकाई तभी तक टिकेगी जब तक वह नफरत कायम है। लगातार पनप रही इस नफरत ने 1947 से भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों को प्रभावित किया है। सत्ताधारियों द्वारा निर्मित इस नफरत ने भारत और पाकिस्तान के लिए दोस्त बनना और सौहार्दपूर्ण ढंग से रहना असंभव बना दिया है। श्री आज़ाद ने यह भी सटीक और सही भविष्यवाणी की थी सबसे बड़ा खतरा अंतरराष्ट्रीय शक्तियों से आएगा जो नए देश को नियंत्रित करना चाहेंगी और समय बीतने के साथ यह नियंत्रण बढ़ता ही जाएगा।
उन्होंने अपने साक्षात्कार में दूरदर्शितापूर्वक कहा था कि दूसरा महत्वपूर्ण बिंदु जो श्री जिन्ना के ध्यान से छूट गया, वह बंगाल है। उन्हें नहीं पता कि बंगाल बाहरी नेतृत्व का तिरस्कार करता है और देर-सबेर उसे अस्वीकार कर देता है। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, श्री फजलुल हक ने जिन्ना के खिलाफ विद्रोह किया और उन्हें मुस्लिम लीग से निकाल दिया गया। श्री एच.एस. सुहरावर्दी जिन्ना का बहुत सम्मान नहीं करते। बंगाल का वातावरण ऐसा है कि वह बाहरी नेतृत्व को नापसंद करता है और अपने अधिकारों और हितों के लिए खतरा महसूस होने पर विद्रोह कर देता है।
उन्होंने आशंका व्यक्त की कि पूर्वी पाकिस्तान का बहुत लंबे समय तक पश्चिमी पाकिस्तान के साथ रहना संभव नहीं होगा। दोनों क्षेत्रों के बीच कुछ भी समान नहीं है सिवाय इसके कि वे खुद को मुसलमान कहते हैं। लेकिन मुसलमान होने के तथ्य ने दुनिया में कहीं भी स्थायी राजनीतिक एकता नहीं बनाई है। अरब दुनिया हमारे सामने है; वे एक समान धर्म, एक समान सभ्यता और संस्कृति को मानते हैं और एक समान भाषा बोलते हैं। वास्तव में वे क्षेत्रीय एकता को भी स्वीकार करते हैं। लेकिन उनके बीच कोई राजनीतिक एकता नहीं है। उनकी शासन प्रणाली अलग-अलग है और वे अक्सर एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप और दुश्मनी में लगे रहते हैं। दूसरी ओर, पूर्वी पाकिस्तान की भाषा, रीति-रिवाज और जीवन-शैली पश्चिमी पाकिस्तान से बिल्कुल अलग है। जैसे ही पाकिस्तान की रचनात्मक गर्मी ठंडी पड़ेगी, विरोधाभास उभरेंगे और मुखर स्वर ग्रहण करेंगे। अंतरराष्ट्रीय शक्तियों के हितों के टकराव से इन्हें बढ़ावा मिलेगा और परिणामस्वरूप दोनों पक्ष अलग हो जाएंगे। पूर्वी पाकिस्तान के अलग होने के बाद, जब भी ऐसा होगा, पश्चिमी पाकिस्तान क्षेत्रीय विरोधाभासों और विवादों का युद्धक्षेत्र बन जाएगा। पंजाब, सिंध, सीमांत और बलूचिस्तान की उप-राष्ट्रीय पहचानों का दावा बाहरी हस्तक्षेप के लिए दरवाजे खोल देगा। बहुत जल्द ही अंतरराष्ट्रीय शक्तियां पाकिस्तानी राजनीतिक नेतृत्व के विविध तत्वों का इस्तेमाल बाल्कन और अरब राज्यों की तर्ज पर देश को तोड़ने के लिए करेंगी। शायद उस समय हम खुद से पूछेंगे कि हमने क्या पाया और क्या खोया।
मौलाना कलाम ने जोर देकर कहा था कि असली मुद्दा आर्थिक विकास और प्रगति है, यह निश्चित रूप से धर्म नहीं है। मुस्लिम व्यापारी नेता अपनी खुद की क्षमता और प्रतिस्पर्धी भावना पर संदेह करते हैं। वे आधिकारिक संरक्षण और एहसानों के इतने आदी हो चुके हैं कि उन्हें नई आजादी और स्वतंत्रता से डर लगता है। वे अपने डर को छिपाने के लिए दो-राष्ट्र सिद्धांत की वकालत करते हैं और एक मुस्लिम राज्य चाहते हैं जहां उन्हें सक्षम प्रतिद्वंद्वियों से किसी भी प्रतिस्पर्धा के बिना अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करने का एकाधिकार हो। यह देखना दिलचस्प होगा कि वे इस धोखे को कितने समय तक जीवित रख पाते हैं। आज़ाद ने यह भी भविष्यवाणी की थी कि अपनी स्थापना के समय से ही पाकिस्तान को कुछ बहुत गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ेगा – जैसे कि अक्षम राजनीतिक नेतृत्व सैन्य तानाशाही का मार्ग प्रशस्त करेगा जैसा कि कई मुस्लिम देशों में हुआ है, विदेशी ऋण का भारी बोझ, पड़ोसियों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों की कमी और सशस्त्र संघर्ष की संभावना, आंतरिक अशांति और क्षेत्रीय संघर्ष, पाकिस्तान के नव-धनाढ्यों और उद्योगपतियों द्वारा राष्ट्रीय धन की लूट और पाकिस्तान को नियंत्रित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय शक्तियों की साजिशें।
मौलाना कितने सही थे! उन्होंने 1946 में जो भविष्यवाणी की थी, वह पाकिस्तान के भविष्य की रूप रेखा दिखती है। वर्तमान में पाकिस्तान विघटन के गंभीर खतरे का सामना कर रहा है और लगभग गुमनामी के कगार पर है। पाकिस्तान के आख्यान का दुर्भाग्यपूर्ण हिस्सा यह है कि वे आज भी दीवार पर लिखे शब्दों को पढ़ने में विफल रहे हैं और सही रास्ते पर चलने को तैयार नहीं हैं। पाकिस्तान की सत्ता को यह स्वीकार करना चाहिए कि भारत के दुनिया के लगभग सभी मुस्लिम बहुल देशों के साथ बेहद सौहार्दपूर्ण संबंध हैं- इसलिए भारत जैसे शांतिपूर्ण राष्ट्र के प्रति उनकी शत्रुता में धर्म को हथियार नहीं बनाया जाना चाहिए, क्योंकि भारत का सभ्यतागत चरित्र ” सर्व धर्म सद्भाव” है। भारत अपने सतहत्तर साल के इतिहास में कभी भी आक्रामक नहीं रहा है। इतिहास इस बात का गवाह है कि पाकिस्तान की सत्ता समझदारी भरी सलाहों से दूर रहती है और हमेशा हिंसा, विघटन और विनाश के जोखिम के रास्ते पर आक्रामक तरीके से चलने का विकल्प चुनती है। पाकिस्तान ने इस अस्तित्व का चुनाव किया है। उसका भविष्य क्या होगा , यह वह सवाल है जिसका उत्तर उसके ही हाथ में है। रास्ता भी साफ़ है – उसे सही मार्ग यानि शांति और सौहार्द का मार्ग जल्दी चुनना होगा।
(विजय शंकर पांडे भारत सरकार के पूर्व सचिव हैं और डॉ. स्मिता पांडे इतिहासकार और स्वतंत्र लेखिका हैं)
