महाभारत का संदेश

ऋषि व्यास वर्णित महाकाव्य का सारांश मुख्यतः तीन बिंदुओं पर केंद्रित है।
१. संसार में सज्जन सदैव अल्पसंख्या में होते हैं ।
कौरव १०० परंतु पांडव ५ ।
२.न्याय की लड़ाई में,अन्याय के पक्षधर सभी शत्रुओं से युद्ध करना पड़ता है।
गुरु,मित्र,अथवा कुटुम्बी,यदि अन्याय के पक्षधर हों तो वे शत्रु हैं उन्हें परास्त करना है ।
३.केवल काम करना अपने हाथ में है,प्रयत्न की सफलता अपने हाथ में नहीं है।
कार्यरत रहो,सफलता से आसक्त नहीं रहो।

प्रो. एच सी पांडे

देश के विकास कार्य में प्रमुख बाधा हमारी,आजकल व्याप्त,मानसिकता है।एक नासमझी,एक संकोच,और,एक हताशा।
आज आप,किसी भी स्तर पर, किसी से भी,अपना दायित्व निभाने अथवा कोई भी रचनात्मक कार्य करने को कहिए तो उन सबका एक ही उत्तर होता है कि क्या किया जाए,सब तरफ़ इतने बेईमान हैं कि,कुछ भी करने का,कोई लाभ नहीं।यह विचार,समय की गतिशीलता की नासमझी के कारण है ।सतयुग से,त्रेता,द्वापर होते हुए,आज हम कलियुग के प्रथम चरण में पहुँच चुके हैं और स्थापित युग-धर्म, “प्रियं च नानृतम ब्रूयात “ से ,’ प्रियं च आनृतम ब्रूयात’ में परिवर्तित हो चुका है ।अब मधुर असत्य का बोलबाला है,और,इसमें भी हम एक कदम आगे बढ़ चुके हैं,मीठे बोल भी मीठी छुरी में बदल गए हैं।यह सोच के चलना कि जब बेईमान समाप्त हो जाएँगे तभी अपना दायित्व निभाना है,एक दिवास्वप्न है क्योंकि बेईमानों का बाहुल्य धरातल का सत्य है जो महाभारत काल में भी था।अत: सकारात्मक सोच तथा सृजनात्मक कार्य में लगे रहना है,चाहे सब तरफ़ नकारात्मक विचार तथा विध्वंसक गतिविधियाँ व्याप्त हों।
कुरुक्षेत्र में अर्जुन ने अस्त्र उठाये तभी दुर्जनों की पराजय हुई।स्मरण रहे,कौरव पांडवों से कई गुना अधिक थे तथा अन्याय की पक्षधर सेनायें भी पांडव पक्ष की सेना से गई गुना अधिक थी।

दुर्व्यवहार,दुर्वचन,दुष्टता,दायित्वहीनता,दुष्प्रचार,दुष्कृत्य,से लेकर दुर्दान्त अपराध तक के दोषियों को जानते हुए भी,ऐसी घटनाओं से संबंधित,प्रत्यक्षदर्शी से लेकर सक्षम दंडाधिकारी तक,अपना कर्तव्य निर्वहन करने में संकोच करते हैं क्योंकि अपराधी,अपनी पहचान,अपनी बिरादरी,अपनी जाति अथवा अपने बड़ों से संबंधित होता है।इतना ही नहीं , ‘क्षमा वीरस्य भूषणं‘ की संस्कृति में पले बढ़े होने के कारण दंड देने में भी संकोच होता है ।पंचायत स्तर से लेकर उच्चतम न्यायलय तक अनेकानेक निर्णय संकोच की मानसिकता से प्रभावित हुए हैं और होते जा रहे हैं।समाज में फैलती हुई अव्यवस्था और बढ़ती हुई अपराधिक घटनाओं का मुख्य कारण है सक्षम अधिकारियों द्वारा न्यायोचित कार्रवाई करने तथा दंड देने में में संकोच करना।
अर्जुन ने अपने समक्ष बंधु बांधवों तथा गुरुजनों को देख कर रणभूमि में गांडीव त्याग कर कहा था कि वह अपनों ही को मारकर त्रिलोक का राज्य तक नहीं चाहता और वह युद्ध नहीं करेगा।यदि ऐसा हुआ होता तो अन्याय की विजय और न्याय की पराजय होती।
वर्षों से देश का प्रबुद्ध वर्ग भी निराशावादी रह रहा है और असफलता के भय से चुनौतियों का पूर्ण साहस से सामना करने से कतराता है ।देश की सदियों से चली आ रही सामाजिक एवं आर्थिक समस्याओं के निराकरण हेतु, सीमित सोच तथा प्रचलित तौर-तरीक़ों से हटकर बृहद स्तर पर सोच तथा नवीनतम,परंतु देश में अपरीक्षित,तकनीकों को अपनाना होगा।सिंगापुर जैसे लघु देश से लेकर चीन जैसे विशाल देश का,अति पिछड़ी श्रेणी से अति अग्रणी देशों की पंक्ति में आने का मुख्य कारण रहा है वहाँ के नागरिकों का महत्वाकांक्षी योजनाओं में अनवरत कार्यशील रह कर,कभी हताश न रहना यह सोचकर कि सफलता मिलेगी या नहीं।सुविचारित योजना के,कार्यान्वयन पर ध्यान केंद्रित होना चाहिये,न कि सफलता से आसक्ति।
महाभारत ग्रंथ मानवता के विकास पथ को चित्रित करता है और उसके संदेश सर्वकालिक हैं।देशवासियों को इस महान कृति के संदेश को आत्मसात् कर के समाज की वास्तविकता समझते हुवे, संकोच त्याग कर, देश के विकास यज्ञ निरंतर लगे रहना है।यज्ञफल पर आसक्त न रह कर निरंतर आहुति देने पर केंद्रित रहना है।
(प्रो. एच सी पांडे, मानद कुलपति, बिट्स, मेसरा हैं)

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