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(Update 12 minutes ago)

‘आप’ का पाप

आज के राजनैतिक परिद्रश्य में ‘आप’ पार्टी अतुलनीय है। इस दल के नेता क्या वादे लेकर जनता के सामने गये और क्या इरादे थे अब सब स्पष्ट है।इस दल के शीर्ष नेता के केवल एक वादे के निभाने की मिसाल काफ़ी है,जनता का राजनेताओं में विश्वास तोड़ने के लिये।
प्रो. एच सी पांडे

“ The urge to save humanity is almost always a false-face for the urge to rule.“
…………… H.L.Mencken
“मानवता को बचाने की उत्कंठा,अधिकतर शासन करने की इच्छा का मुखौटा होता है।”

दशकों पहले सुदर्शन जी की एक कहानी अत्यंत लोकप्रिय थी,शीर्षक था ‘हार की जीत।’ संक्षेप में कहानी एक डाकू का छल से,एक साधु बाबा से घोड़ी छीनने का प्रयास वर्णित करती है। एक भीख मांगते हुए अपाहिज के वेश में,डाकू खड़ग सिंह,घोड़े पर सवार बाबा भारती से सहारा देने को कहता है और फिर उनको धक्का देकर घोड़ा लेकर भागने लगता है,उस पर बाबा भारती केवल कहते हैं ‘जाओ पर किसी से यह सब कहना मत नहीं तो लोग किसी भी भिखारी पर कभी विश्वास नहीं करेंगे।’ खड़ग सिंह विशुद्ध डाकू था पर उसने अंतरात्मा की आवाज़ सुनी अत: वह अपने आप चुपचाप बाबा भारती को घोड़ा लौटा देता है ताकि ग़रीबों पर लोगों का विश्वास बना रहे।
आज के राजनैतिक दलों को डाकुओं का गिरोह कहना पर्याप्त नहीं है क्योंकि डाकू वेश बदल कर,कीर्तन करते हुए,नहीं आते हैं,वे अपनी ही वेश-भूषा में,बंदूक़ें दागते हुए,धावा मारते हैं।राजनैतिक दल,भू-खंड,काल-खंड और समाज-खंड के अनुरूप अपना वेश,विषय और अभिभाषण परिवर्तित करके,सत्य,नैतिकता और सिद्धान्त का भजन गाते हुए हुए समाज और देश के सुख,सम्रद्धि व विकास हेतु नियोजित नृत्य मंच पर प्रस्तुत करते हैं,और अंतत: वही करते हैं जो डाकू करते हैं,लूट और विध्वंस।चुनाव जीत जाने के बाद राजनेता अपने और अपने दलहित में देश के संसाधनों की लूट,और समाज के विध्वंस को ही राजनीति का प्रथम और अंतिम लक्ष मानते हैं। उनके कुकृत्यों से जनता की आस्था व विश्वास लोकतांत्रिक शासन प्रणाली से टूट जाये यह राजनैतिक दलों के लिए लेशमात्र भी महत्व नहीं रखता।
खड़ग सिंह,वर्तमान राजनेताऔं की तुलना में देवतुल्य है क्योंकि वह ग़रीबों पर लोगों के विश्वास को नहीं टूटने के लिये लूटा हुवा अमूल्य घोड़ा तक बाबा भारती को लौटा देता है।
आज के राजनैतिक परिद्रश्य में ‘आप’ पार्टी अतुलनीय है। इस दल के नेता क्या वादे लेकर जनता के सामने गये और क्या इरादे थे अब सब स्पष्ट है।इस दल के शीर्ष नेता के केवल एक वादे के निभाने की मिसाल काफ़ी है,जनता का राजनेताओं में विश्वास तोड़ने के लिये। सत्तासीन होते ही ‘न गाड़ी लुंगा,न बंगला लुंगा’ का वादा, गाड़ियों के क़ाफ़िले और शीश महल में परिवर्तित कर दिया गया और माथे पर शिकन तक न आई।इतना ही नहीं सारी आप पार्टी इस घोर विश्वासघात पर लज्जित होने के विपरीत,इस कृत्य को न्यायसंगत बताने में जुट गई।कभी सुरक्षा का हवाला दिया,कभी प्रोटोकॉल की प्रतिबद्धता बताई,और,मुख्यमंत्री के क़ाफ़िले में से एक गाड़ी भी कम नहीं की गई ।शीशमहल के मामले में तो अहंकार की पराकाष्ठा कर दी प्रधानमंत्री के आवास का हवाला दे कर।दिल्ली राज्य,जो मूलतः एक महिमामंडित नगर पालिका है,के मुख्यमंत्री की तुलना देश के प्रधानमंत्री से करना हास्यास्पद है,और वैसे भी किसी भी प्रधानमंत्री ने कभी भी बड़े बंगले में नहीं रहने का वादा नहीं किया।
यह सच है कि देश में राजनैतिक दलों ने अनेकों बार चुनावी वादे निभाये नहीं हैं परंतु किसी ने भी इतनी धृष्टता से वादे तोड़ कर छाती नहीं ठोकी है।
वादों की मशाल जला कर जनता की उम्मीदों के रास्ते रोशन करके फिर उन्हीं वादों को जला देना वादाखिलाफ़ी नहीं महापाप है।
(प्रो. एच सी पांडे, मानद कुलपति, बिट्स, मेसरा हैं)

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