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(Update 12 minutes ago)

अमेरिका के साथ व्यापार समझौते में भारत के राष्ट्रीय और भू-राजनीतिक हितों की रक्षा जरूरी

पूर्व आईएएस अधिकारी वी एस पांडे का कहना है कि निर्णय लेते समय सबसे पहले यह सुनिश्चित करना होगा कि एक स्पष्ट संदेश जाए कि भारत देश किसी दूसरे देश के दबाव में कोई भी निर्णय कभी नहीं लेगा चाहे वह देश सबसे शक्तिशाली देश ही क्यों ना हो । इसी के साथ निर्णय ऐसा हो जो यह संकेत भी स्पष्ट रूप से दे कि देश अपने साथ वर्षों से मित्रवत व्यवहार करने वाले देशों के हितों का साथ कभी नहीं छोड़ेगा और अपने तात्कालिक लाभ की ख़ातिर अपनी मित्रता की तिलांजलि नहीं देगा

हाल ही में अमेरिकन राष्टपति ट्रम्प ने भारत से अमेरिका निर्यात होने वाले उत्पादों पर पचीस प्रतिशत टैरिफ यानी आयात शुल्क लगाने की घोषणा की और यह भी कहा कि रूस से कच्चा तेल आयात करने के लिए अतिरिक्त दंडात्मक शुल्क भी लगाया का सकता है । इस घोषणा के बाद देश की सरकार की इस बारे में भविष्य की रणनीति को लेकर चर्चा का बाजार गर्म है और सरकार के अगले कदम को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं ।अमेरिका की ओर से सिर्फ भारत के साथ ही इस प्रकार का व्यवहार किया जा रहा हो , तो ऐसा भी नहीं है । विश्व भर में ट्रम्प सरकार द्वारा टैरिफ को लेकर जो कार्यवाहियां लगभग तीन- चार महीने शुरू की गईं, उसके चलते विश्व व्यापार में अनिश्चितता का माहौल है क्योंकि अमेरिका एक बड़ा और उन्नत बाज़ार है जहाँ के लोगों की क्रय शक्ति बहुत अधिक है और तमाम तरह के उत्पादों की बड़ी मात्रा में खपत का वह दशकों से केन्द्र रहा है । इसी के चलते सभी देशों में टैरिफ के प्रकरण को लेकर चिंताएं स्वाभाविक है ।आज सभी के मन में प्रश्न यही है कि भारत क्या अमेरिकी राष्ट्रपति के दबाव में रूस से कच्चा तेल खरीदना बंद करेगा या वह दबाव को बेकिनार करेगा ।
यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों में सभी देश अपने हितों को ध्यान रखते हुए ही निर्णय लेते हैं और यहीं सही स्थिति भी होती है । इस दृष्टि से देश को इस मामले में निर्णय लेने में कोई दिक्कत पेश नहीं आनी चाहिए । यह सभी को ज्ञात है कि पिछले कुछ दशकों से भारत और अमरीका के संबंध पहले की तुलना में काफ़ी बेहतर हुए हैं और सुरक्षा मामलों में काफ़ी प्रगति हुई है लेकिन हाल के दिनों में स्थिति में काफ़ी बदलाव देखने को मिला है । अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा पाकिस्तान के प्रधान मंत्री को दरकिनार करके सेना प्रमुख को खाने पर बुलाना एक ऐसा संकेत था जिसके निहितार्थ अभी भी खोजे जा रहे हैं ।इसी तरह पहलगांव आतंकी घटना के बाद भारतीय सुरक्षाबलों द्वारा पाकिस्तान के अंदर चलरहे आतंकी ठिकानों को नष्ट करना और पाकिस्तानी सेना की जवाबी कार्यवाही के प्रतिफल में नौ और दस मई की रात में की गई भारतीय सेनाओं की जोरदार जवाबी कार्रवाई के फलस्वरूप जब पाकिस्तानी सेना ने घुटने टेके और भारतीय सैन्य कार्यवाही को समाप्त कराने के लिए तमाम देशों से मदद मांगी तो अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प द्वारा युद्ध विराम का सारा श्रेय स्वयं लेने संबंधी बयान दिए गए जिसको भारत ने कभी स्वीकार नहीं किया ।ऐसा लगता है कि यहां से दोनों देशों के बीच तनाव जैसी स्थिति पैदा हुई जिसका प्रतिफल वर्तमान में पैदा हुई स्थितियों में देखा जा सकता है । दोनों देशों के बीच व्यापार संबंधी समझौता भी अधर में लटका सा दिखता है क्योंकि देश ने अपने व्यापक हितों की दृष्टि से अमरीकी पक्ष की कृषि , डेयरी एवं लघु उद्योग क्षेत्र को खोलने जैसी कई मांगों को ठुकरा दिया है जिससे दोनों राष्ट्रों के बीच और गतिरोध पैदा हुआ ।
इन स्थितियों में देश की सरकार को एक ऐसा मार्ग खोजना है और ऐसा निर्णय लेना है जो राष्ट हितों की पूरी सुरक्षा कर सके। इसके लिए सरकार को दूरदृष्टि अपनानी होगी और तात्कालिक लाभ के लोभ से बचना होगा । ऐसी स्थितियां आज पहली बार देश के सामने पैदा नहीं हुई हैं और ना ही ऐसा कोई अंतिम बार हो रहा है । ऐसे समय में निर्णय लेते समय सिर्फ और सिर्फ देश हित को सर्वोपरि रखते हुए यदि निर्णय लिया जाएगा तो वह दीर्घ काल में सभी के साथ अच्छे संबंध बनाने में सहायक होगा ।
निर्णय लेते समय सबसे पहले यह सुनिश्चित करना होगा कि एक स्पष्ट संदेश जाए कि भारत देश किसी दूसरे देश के दबाव में कोई भी निर्णय कभी नहीं लेगा चाहे वह देश सबसे शक्तिशाली देश ही क्यों ना हो । इसी के साथ निर्णय ऐसा हो जो यह संकेत भी स्पष्ट रूप से दे कि देश अपने साथ वर्षों से मित्रवत व्यवहार करने वाले देशों के हितों का साथ कभी नहीं छोड़ेगा और अपने तात्कालिक लाभ की ख़ातिर अपनी मित्रता की तिलांजलि नहीं देगा । इसी प्रकार निर्णय लेते समय यह स्पष्ट कर देना होगा कि देश की आम जनता के हितों के साथ समझौता कदापि स्वीकार्य नहीं होगा ।लेकिन यहाँ यह भी जरूरी है कि देश का पक्ष सभी के सामने मजबूती और स्पष्टता से रखा जाए ताकि दूसरा पक्ष भी निर्णय की तार्किकता को समझ सके और यह बात भी उसे स्पष्ट हो जानी चाहिए कि १४० करोड़ लोगों का लोकतांत्रिक देश किसी भी देश के दबाव में आने वाला नहीं है क्योंकि कमोबेश हमारा देश एक स्वतंत्र विदेश नीति का पोषक रहा है और वह लंबे समय तक वह गुटनिरपेक्ष देशों को नेतृत्व करता रहा । यह बात भी सभी को बतानी होगी कि यद्यपि भारत देश अभी भी विकास के रास्ते पर बहुत आगे तक नहीं जा पाया है लेकिन फिर भी वह किसी दूसरे देश से यह उम्मीद नहीं करता कि उसको कोई देश यह कहे कि तेल भारत कहाँ से ले और कहाँ से ना ले , या किससे भारत देश अच्छे संबंध बनाए रखे और किससे नहीं । यही स्पष्टता देश को इन दिनों पैदा हुई स्थितियों से निपटने में अत्यंत अहम साबित होगी और देश का हित सुरक्षित करने में मदद करेगी ।
(विजय शंकर पांडे भारत सरकार के पूर्व सचिव हैं)

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