
कुछ अपवाद छोड़ कर सभी प्रशासनिक अधिकारी सामान्य जन से किसी भी विषय पर उसका दृष्टिकोण समझना समय की बरबादी मानते हैं।यह एक कारण है कि अधिकारी सामान्य व्यक्ति से बमुश्किल मिलते हैं
प्रो. एच सी पांडे
हर एक बात पर कहते हैं कि तू क्या है,
तू ही बता,यह अंदाज़े गुफ़्तगू क्या है ।
…….. ग़ालिब
जनतांत्रिक शासन प्रणाली की सफलता राजनैतिक शासन तथा प्रशासनिक- तंत्र के सुचारु समन्वय पर निर्भर रहती है।वर्तमान में प्रशासन- तंत्र का संचालन भारतीय प्रशासनिक सेवा द्वारा होता है,जिसके सदस्य एक कठिन परीक्षा में सफल होने पर,व्यापक साक्षात्कार के द्वारा चयनित होते हैं,तत्पश्चात् उच्चस्तरीय प्रशिक्षण होने पर संवर्ग में सम्मिलित किये जाते हैं।इस परिस्थिति में संवर्ग की गुणवत्ता पर कोई प्रश्न नहीं उठ सकता।अब प्रश्न केवल यह है कि देश के विकास के संदर्भ में कार्यान्वित योजनाएँ पूर्णतः सफल क्यों नहीं हो रही हैं व प्रायोजित परिणाम क्यों नहीं मिल रहे हैं।
वर्तमान परिस्थिति के कई कारण है।राजनैतिक शासक दल की उदासीनता,नासमझी, अथवा,राजनैतिक स्वार्थपरता एक अलग विषय है जो सर्वव्यापी है और सर्वविदित भी है,परंतु,कहीं कहीं,प्रशासन की अप्रभावी कार्यशैली भी उचित विकास गति न होने के लिए ज़िम्मेदार है।
आज के युग में विभिन्न विषयों की सामान्य जानकारी से अधिक विशिष्ट विषय की गहरी जानकारी की आवश्यकता होती है,अत:,कम से कम तकनीकी योजनाओं पर,विशेषज्ञों की राय को सर्वाधिक महत्ता देनी चाहिए,परंतु ऐसा अक्सर नहीं हो रहा है।एक स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख वरिष्ठ चिकित्सक का कथन था कि वे क्या राय दे सकते हैं,उनके सचिव ऑपरेशन के अलावा सारी चिकित्सा करने को तैयार हैं ।कुछ विकास योजना पर विशेषज्ञों की राय को राजनैतिक कारणों से कई बार नज़रअंदाज़ किया जाता है परंतु ऐसा कर के,संबंधित संचिकाएँ में,इसका औचित्य केवल प्रशासनिक अधिकारी द्वारा ही दर्शाया जाता है।ग़लत निर्णय का राजनेता से प्रतिकार करना संभव होता है क्योंकि,जनता की वोट की ताक़त के कारण,उसे सामान्य जन को सुनना ही पड़ता है,परंतु प्रशासनिक अधिकारी पर ऐसा कुछ दबाव न होने से अधिकतर संबंधित अधिकारी सुनवाई तक से इनकार कर देते हैं ।
दशकों पूर्व ब्रिटिश पार्लियामेंट में एक M.P. ने उस समय की प्रशासनिक सेवा, I.C.S. पर कटाक्ष करते हुए कहा था ‘ It neither Indian nor civil,and,still less a service.’ स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात इस प्रशासनिक सेवा का पुनर्जन्म I.A.S. के रूप में हुआ परंतु दुर्भाग्यवश DNA के कारण कुछ अनुवांशिक त्रुटियां परिवर्तित स्वरूप में बची रह गईं ।विशाल देश की विशाल समस्याओं से जूझना,वह भी राजनैतिक लगामों में बँधे हुए,टेढ़ी खीर अवश्य है परंतु यह सोचना कि प्रतियोगिता परीक्षा में सफलता हासिल कर और अकादमी में प्रशिक्षण प्राप्त कर केवल वे ही सभी समस्याओं का हल निकाल सकते हैं एक भ्रम है।यह भ्रम,हर कार्यक्षेत्र में,कमोबेश सभी को होता है जो समझा जा सकता है,लेकिन यह विचार रखना की दूसरों को कुछ भी समझ नहीं आता,समझना मुश्किल है ।
कुछ अपवाद छोड़ कर सभी प्रशासनिक अधिकारी सामान्य जन से किसी भी विषय पर उसका दृष्टिकोण समझना समय की बरबादी मानते हैं।यह एक कारण है कि अधिकारी सामान्य व्यक्ति से बमुश्किल मिलते हैं ।
दूसरा कारण समयानुकूल,व्यवहारिक है।साधारणतः जब भी समय मांगा जाता है तो निजी सचिव कहते हैं कि साहिब व्यस्त हैं या दौरे पर हैं या मीटिंग में गये हुए हैं या अभी दफ़्तर नहीं पहुँचे हैं ।एक वरिष्ठ अधिकारी ने स्वीकार किया कि यह सब होता है इसलिए कि उनको किसी मामले में निर्णय न लेना पड़े और न जाने कौन सा मंत्री नाराज़ हो जाए ।
जनतंत्र की आत्मा है सब से विमर्श।व्यापक परामर्श से सही निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है तथा जनतांत्रिक व्यवस्था सफलता से संचालित रहती है।
(प्रो. एच सी पांडे, मानद कुलपति, बिट्स, मेसरा हैं)
