अमेरिकी वीज़ा शुल्क वृद्धि पर विवाद निरर्थक और दिशाहीन है

पूर्व आईएएस अधिकारी वी एस पाण्डेय का मानना है कि आज अमरीकी वीसा को लेकर जो बवाल मचा है वह मेरे विचार से पूरी तरह बेमानी है क्योंकि अमरीका ने कोई ठेका नहीं लिया है हमारे लोगों को उच्च शिक्षा दिलाने का और ना ही अमरीका की जिम्मेदारी है कि वह हिन्दुस्तानियों को अपने देश में नौकरी दे । हाँ एक देश के रूप में अमरीका को जब भी बाहर के लोगों को अपने यहाँ बुलाने की ज़रूरत पड़े गी तो वह रेड कारपेट स्वयं ही बिछायेंगे और हमारे लोगों को बुलायेंगे ।

आज देश के युवाओं में और विशेषकर तकनीकी शिक्षा पाने की होड़ में लगे और अमेरिकन ड्रीम को भुनाने की इच्छा रखने वाले लोगों में अनिश्चितता का माहौल है क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति ने “पहले अमरीका “ यानी अमेरिका फर्स्ट के तहत एच1 वी के नियमों को सख्त करके वीसा फ़ीस को बढ़ा कर एक लाख डॉलर कर दिया । अब देश में इसको लेकर तर्क वितर्क हो रहा है और अमरीका के उस कदम की सख़्त आलोचना की जाने लगी है । लोगों का तर्क है कि ट्रम्प प्रशासन का यह कदम भारत के लोगों के हितों के ही सिर्फ ख़िलाफ़ नहीं है बल्कि अमरीका के भी हित में नहीं है क्योंकि भारतीय मूल के लोगों का भी अमेरिका को आगे ले जाने में बड़ा योगदान रहा है जिसको दरकिनार नहीं किया जाना चाहिए ।
प्रश्न यह है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जिनको अमरीका की जनता ने चुना है, की पहली जिम्मेदारी अपने नागरिकों के हितों की रक्षा करना है ना कि किसी अन्य देश के लोगों के हितों की । यह एक सच्चाई है कि पिछले कुछ दशकों के दौरान अमेरिका की कंपनियों अन्य देशों में जाकर फैक्ट्री लगाने और उच्च तकनीकी इकाइयों की स्थापना करने में जुटे रहे जिसके चलते अमरीकी नागरिकों के रोजगार के अवसर कम हुए और बेरोजगारी बढ़ी । इतना ही नहीं मैनुफैक्चरिंग के छेत्र में अमेरिका चीन जैसे देशों से पीछे हो गया जिसका बुरा असर उसकी सुरक्षा एवं आर्थिक गतिविधियों पर भी पड़ा । इस दृष्टि से पिछले कुछ दशकों में पैदा हुई इन समस्याओं का निराकरण करने के लिए अगर अमरीकी प्रशासन अपने विवेक के अनुसार कुछ कदम ,जिसने वीसा नीति में परिवर्तन भी शामिल है, उठा रहा तो उसको लेकर किसी को भी आपत्ति करने का कोई अधिकार नहीं होना चाहिए ।
सबसे महत्त्वपूर्ण प्रश्न तो यह है कि भारत छोड़ कर अमरीका भागने की नौबत क्यों आ रही है ? क्यों हमारे “विश्वप्रसिद्ध शिक्षा संस्थान “ भारतीय प्रतिभाओं को अपने यहाँ उच्च शिक्षा के लिए रोक नहीं पा रहे है? क्या कारण हैं कि भारत में उच्च तकनीक वाले उद्योग धंधे पनपने का माहौल आज तक नहीं बन पाया जिसके चलते लोग नौकरियों के लिए अमरीका का वीसा लेने के लिए लाइन लगाये खड़े रहते हैं ? शोध और अनुसंधान को लेकर सभी सरकारों ने सिवाय बयानबाजी के गंभीर कदम क्यो नहीं उठाए ? भारत में ईज़ ऑफ़ डूइंग बिज़नेस का ढिंढोरा पीटने बालों को क्या यह नहीं दिखता कि हज़ारों की संख्या में हाई नेटवर्थ वाले लोग यानी करोड़पति लोग हर वर्ष हज़ारों की संख्या में देश छोड़ कर भाग रहे हैं ?
साफ़ तौर पर इन प्रश्नों का उत्तर हमारे देश की व्यवस्था दे पाने की स्थिति नहीं है क्योंकि कभी भी हमारे देश की सरकारों ने इन समस्याओं को हल करने के बारे में ना तो गंभीरता से सींचा और ना ही समस्या के हल की और कोई कदम हो बढ़ाया ।आज अमरीकी वीसा को लेकर जो बवाल मचा है वह मेरे विचार से पूरी तरह बेमानी है क्योंकि अमरीका ने कोई ठेका नहीं लिया है हमारे लोगों को उच्च शिक्षा दिलाने का और ना ही अमरीका की जिम्मेदारी है कि वह हिन्दुस्तानियों को अपने देश में नौकरी दे । हाँ एक देश के रूप में अमरीका को जब भी बाहर के लोगों को अपने यहाँ बुलाने की ज़रूरत पड़े गी तो वह रेड कारपेट स्वयं ही बिछायेंगे और हमारे लोगों को बुलायेंगे ।लेकिन हमारे लोगों को कोई अपने देश में नौकरी दे और उसके लिए हम उनसे विनती करें , यह तो देश के स्वाभिमान के विपरीत है । आज जो हो रहा है उसकी आहट बहुत पहले से सुनाई पद रही थी लेकिन चूंकि व्यवस्था ने अपने कान बंद कर रखें हैं और आँखों पर पट्टी लगा रखी है इसलिए वह आगे आने वाली स्थितियों से अनजान बने रहे।
आज विश्व भर में अप्रवासियों के ख़िलाफ़ लड़ाई शुरू हो गई है और जो आज अमरीका और कनाडा में हो रहा वही कल यूरोप के देशों में होगा क्योंकि इन देशों का यह तर्क कि हमने दूसरे देशों में विद्यमान कुव्यवस्था के चलते पैदा हुई गरीबी , बेरोजगारी, भुखमरी जैसी स्थितियों को हल करने का ढेका नहीं लिया है और अन्य देशों के नागरिकों को चाहिए कि वह अपना देश छोड़ कर दूसरे देश भागने की जगह अपने देश की व्यवस्था को ठीक करने , भ्रष्टाचार को समाप्त करने के काम में लग जाए।
वस्तुतः इस देश के सक्षम लोगों पर यह जिम्मेदारी है कि वह उन सभी कारणों का संज्ञान लें जिसके चलते लोग भारत से पलायन पर मजबूर हो रहे हैं और उन स्थितियों को बदलने के लिए एक जुट हो जातें । इस व्यवस्था में वर्षों तक काम करने के बाद मेरा यही अनुभव रहा कि जब तक इस देश की राजनीति को भ्रष्टाचार के चंगुल से मुक्त नहीं किया जाए गा और जाति, धर्म पर आधारित विभाजनकारी राजनीति का नाश नहीं किया जाएगा तब तक देश के हालात नहीं सुधरेंगे और इसी तरह देश से प्रतिभाओं का पलायन जारी रहे गा और हम दूसरे देशों की दया पर निर्भर बने रहेंगे । यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के सात दशक बीतने के बाद भी विश्व भर में हमारे प्यारे देश को एक पिछड़े , गरीब और , भ्रष्ट देश के रूप में गिना जाता है ।समझदारी देश छोड़ कर भागने में नहीं है बल्कि व्याप्त कुव्यवस्था और भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाने के लिए एक जुट होकर काम करने में है । इस लक्ष्य में सफलता मिलना मुश्किल नहीं है , जरूरत इस बात की है कि समस्या से लड़ा जाय, भागना कायरता है ।
(विजय शंकर पांडे भारत सरकार के पूर्व सचिव हैं)

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