देश की स्वतंत्रता का आठवाँ दशक पर हम अभी भी,तट से दूर, नदी में,हाथ-पैर मार रहे हैं,समुद्री चक्रवात में फँसे हुए हैं और पर्वत-शिखर को केवल निहार सक रहे हैं ।यह ठीक है कि हमारे प्रयत्न निरंतर चल रहे हैं परन्तु प्रगति संतोषजनक प्रतीत नहीं होती ।इस परिस्थिति का कारण है जनमानस में उत्साह का अभाव,फलस्वरूप जनता की सहभागिता की,संभावनाओं के संदर्भ में, नितांत अपर्याप्तता
प्रो. एच सी पांडे
‘जगा जगा के हमें,भर रात होशियार करें,
फिर दिन में,लुटेरों से मिल के लूटमार करें।
क़ौम के रहबर जब,यह रुख़,इख़्तियार करें,
तब तुम ही बताओ,हम किसका एतबार करें।’
हज़ारों वर्ष पुरानी सभ्यता,उतने ही अंतराल में पनपी हुईं संस्कृति,हर प्रकार के संभव भेद-मतभेद,रीति-रिवाज,भाषा और अवधारणाओं से भरा हुआ देश और फिर १४० करोड़ की जनसंख्या।ऐतिहासिक कारणों से सदियों से बहती आ रही धार्मिक गुत्थियों की नदी,सामाजिक उलझनों का लहराता सागर ,और आर्थिक समस्याओं का विशाल पर्वत।देश को कुशल तैराकों,निपुण नाविकों और साहसिक पर्वतारोहियों के दल चाहिए जिसके लिये समर्पित तैराकी शिक्षक,नौवहन प्रशिक्षक, पर्वतारोहण अनुदेशक आवश्यक हैं।
परंतु यदि तैराकी शिक्षक नदी किनारे बैठा रहे,नौवहन प्रशिक्षक समुद्री तूफ़ानों से डरे और पर्वतारोहण अनुदेशक आधार-शिविर में ही आराम करें तो क्या प्रशिक्षित देशवासी कभी भी नदी पार कर पाएंगे ? सागर विजय कर सकेंगे ? पर्वत शिखर पर ध्वज-रोपण कर पाएंगे ? उत्तर बताने की आवश्यकता नहीं है ।
देश की स्वतंत्रता का आठवाँ दशक पर हम अभी भी,तट से दूर, नदी में,हाथ-पैर मार रहे हैं,समुद्री चक्रवात में फँसे हुए हैं और पर्वत-शिखर को केवल निहार सक रहे हैं ।यह ठीक है कि हमारे प्रयत्न निरंतर चल रहे हैं परन्तु प्रगति संतोषजनक प्रतीत नहीं होती ।इस परिस्थिति का कारण है जनमानस में उत्साह का अभाव,फलस्वरूप जनता की सहभागिता की,संभावनाओं के संदर्भ में, नितांत अपर्याप्तता ।उत्साह की कमी का मुख्य कारण है देश के शासन-प्रशासन पर जनमानस का डिगता हुआ विश्वास ।बड़ी जनसंख्या के,बड़े देश में,बड़ी समस्याओं का हल जनता की बड़ी सहभागिता से ही संभव है।उल्लेखनीय है कि चीन की प्रगति में जन-सहभागिता का बड़ा हाथ रहा और विकास की त्वरित गति,मशीन के उपयोग से नहीं,वरन, मानव सहयोग से मिली।अधिनायकवादी देश में जन-सहभागिता,एक अधिसूचना जारी कर के,मिल जाती है,परन्तु जनतंत्र में यह संभव नहीं है ,यहाँ जनता का विश्वास जीतना आवश्यक है ।
विश्वास जीतने के लिए केवल भाषण से काम नहीं चलता क्योंकि आज जनता समझदार है,और,वैसे भी उसके कान राजनेताओं के झूठे वादों,और झूठी कसमों से बहरे हो गए हैं।जनता का भरोसा उन पर होता है जिनकी कथनी उनकी करनी में प्रतिबिंबित हो।जनता सुनना नहीं चाहती,देखना चाहती है ।
देश के महापुरुषों को श्रद्धांजलि उनकी मूर्तियां लगा कर नहीं,उनके आदर्शों पर चलकर अर्पित की जाती है।विधायिका,कार्यपालिका एवं न्यायपालिका जनतंत्र के आधार-स्तम्भ हैं। विधायक,प्रशासक और न्यायाधीश का दायित्व-निर्वहन तथा जीवन-शैली,जनता के सोच- विचार को प्रभावित करती है।जनता की नज़र में ये सब शिक्षक,प्रशिक्षक तथा अनुदेशक हैं ।वही विधायक,आमजन को समर्पण के लिए प्रेरित कर सकता है जो स्वयं देश को समर्पित हो,केवल वही प्रशासक कर्मचारी से अधिक परिश्रम करने की माँग कर सकता है जो स्वयं आराम को हराम समझे,और, वही न्यायाधीश जनता का विश्वास न्यायिक व्यवस्था में अडिग रखने को कह सकता है जो समयबद्ध स्पष्ट निर्णय देता हो।
देश का दुर्भाग्य है कि आज का विधायक केवल निज स्वार्थ को समर्पित है,प्रशासक हराम को आराम समझता है और न्यायाधीश केवल समयबद्ध तारीख़ पर तारीख़ देना ही न्याय समझता है।आज की परिस्थिति में जनता का भरोसा संपूर्ण कार्यप्रणाली से उठ चुका है,फलस्वरूप आमजन से देश निर्माण कार्य में सहयोग व सहभागिता की आशा करना तक व्यर्थ है ।
सदियों से उपेक्षित विशाल देश के विकास का संग्राम,बिना जनता के सहयोग व सहभागिता के,नहीं जीता जा सकता।जनता के विश्वास को प्रज्वलित करना अनिवार्य है।
(प्रो. एच सी पांडे, मानद कुलपति, बिट्स, मेसरा हैं)