कोई भी संसद-सत्र आम सहमति से अनुमोदित कार्यक्रम के अनुसार नहीं चल पा रहा है।किसी भी वक्ता को,बिना अशिष्ट रोक-टोक,सुना नहीं जा रहा है।सभाध्यक्ष की अनुमति के बग़ैर भी जो चाहे कहा जा रहा है।महत्वपूर्ण विषय पर गंभीरता से बहस नहीं हो पा रही है।विषय क्या है,बहस क्या है,समझ में नहीं आ रहा है ।
प्रो एच सी पांडे
संसद शब्द का संद्धि-विच्छेद है,सम+सद।सम का अर्थ है बराबर,और,सद का अर्थ है,गोष्ठी,बहुत से लोगों का समूह।तदनुसार,संसद का अर्थ हुआ,बराबर के लोगों का समूह।
ब्रह्मांड गतिशील है,निर्जीव वस्तु तक में अणु,परमाणु,हलचल में रहते हैं।प्राणियों के समूह के विचरते झुंडों में टक्कर-टकराव होना,प्रकृति का अटल नियम है।मनुष्य एक तर्कसंगत प्राणी है,अतः यह समझ तो आता है कि सांसदों के समूह,जिसमें सांसद एक दल से दूसरे दल में विचरते रहते हैं,संसद की बैठक के दौरान प्रस्तावित विषयों पर उनका आपस के विचारों का टकराव तो होना ही है,परंतु विचाराधीन विषय पर बिना विचारे,पूर्णतया असंबद्धित विचारों की झड़ी लगा देना आमजन की समझ से बाहर है।यह सच है कि ये सब चुने हुए जन-प्रतिनिधि हैं और सब बराबर हैं।सभी,डील-डौल में नहीं,शिक्षा-दीक्षा में नहीं,अनुभव में नहीं,परंतु बे-लगाम
तक़रीर देने में और संसदीय कार्यवाही अस्त-व्यस्त करने में बराबरी का दर्जा रखते हैं ।इस संदर्भ में विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश की संसद,नित्य नवीन कीर्तिमान स्थापित करती जा रही है।
कोई भी संसद-सत्र आम सहमति से अनुमोदित कार्यक्रम के अनुसार नहीं चल पा रहा है।किसी भी वक्ता को,बिना अशिष्ट रोक-टोक,सुना नहीं जा रहा है।सभाध्यक्ष की अनुमति के बग़ैर भी जो चाहे कहा जा रहा है।महत्वपूर्ण विषय पर गंभीरता से बहस नहीं हो पा रही है।विषय क्या है,बहस क्या है,समझ में नहीं आ रहा है ।बकवास की बहस हो रही है,या बहस पर बकवास हो रही है,समझना मुश्किल हो रहा है।सर्व-स्वीकार्य नियमों का जब चाहे खुला उल्लंघन हो रहा है।संसद कक्ष के अंदर नारों का शोर करना,तख्तियां लहराना,संसदीय कार्यक्रम- कार्यवाही के पत्र-विपत्र फाड़ कर सभाध्यक्ष के मेज़ पर फेंकना,’वेल ऑफ द हाउस’ में घुसना,संसद कक्ष से मनमर्जी से बहिर्गमन,वगैरह,जब चाहे हो रहा है।अधिकांश संसद सत्र में अनुमोदित कार्यक्रम बस आंशिक रूप से हो पा रहा है और कई बार बिलकुल भी नहीं हो पा रहा है ।यह है भारत की संसद की रिकॉर्ड-तोड़ परफ़ॉर्मेंस।
कोई भी राजनैतिक दल विरोध-पक्ष में हो,जनता के राजकोष के धन पोषित,संसद में इस अभिनय की पटकथा परिवर्तित नहीं होती।अभिनेता बदल जाते हैं,अभिनेत्रियों के परिधान छोटे-बड़े हो जाते हैं,नृत्य-शैली बदल जाती है,और संगीत के स्वर उपर- नीचे हो जाते हैं परंतु आदि,अंत वही होता है जो हमेशा हुआ है ।नाटक होहल्ले से शुरू,होहल्ले से खतम,और , बीचोंबीच,कुछ भी कहने,बताने,के लायक़ नहीं।दर्शकों की प्रतिक्रिया से नाटक-मंडली को जरा भी परवाह नहीं,क्योंकि पाँच वर्ष तक नाचने-गाने का ठेका मिला हुआ है।नृत्य-मुद्रायें विकृत हों,गायकी सुरहीन हो,भैरवी रात को और बागेश्वरी सुबह को गाई जाये,कोई समस्या नहीं।इतना ही नहीं,न गाइये,न नाचिए,और न उपस्थित रहिये,मासिक वेतन,दैनिक भत्ता,यात्रा भत्ता,दूरभाष भत्ता,और ,शायद भत्ताों पर भत्ता,तो मिलता ही रहेगा ।
संसद में वही घिसा-पिटा नाटक उबाऊ अवश्य है परंतु जनता उठ के नहीं जा रही है क्योंकि सत्तासीन पक्ष के आश्वासनों के वातानुकूलित महाकक्ष में बैठ कर सत्ताहीन पक्ष की गालियों की गर्म कॉफ़ी पीने का मज़ा कुछ और ही है ।और जहाँ तक राजनैतिक दलों का सवाल है वे सब इस गणतांत्रिक अभिनय की तारीफ़ कर के फूले नहीं समा रहे हैं ।
उष्ट्राणां विवाहेषु,गीतं गायन्ति गर्धभा:
परस्परं प्रशंसन्ति,अहो रूपम,अहो ध्वनि:
अब प्रश्न यह है कि ऊँट और गधे कौन हैं,सांसद,अथवा,आप और मैं ?
(प्रो. एच सी पांडे, मानद कुलपति, बिट्स, मेसरा हैं)