सामाजिक विद्वेष व आर्थिक असमानता रूपी हलाहल पूर्णतया प्रकट होकर अपने विष-वाष्प से ज्ञानी-विज्ञानी विद्वानों को उत्तरोतर दिग्भ्रमित कर रहा है,सिने-तारिका रूपी रंभा,पूर्ण-रूपेण दृष्टिगत होकर बंबई के बॉलीवुड से लेकर तामिलनाड के टॉलीवुड के मंचों पर लाखों दर्शकों को मोहित कर रही है,और,देशी-विदेशी मदिरा रूपी वारुणी देवी,नगर-नगर में अवतरित होकर ग्रामीण अंचलों तक हर प्रकार के प्याले-गिलासों में छलक रही है।
प्रो. एच सी पांडे
७५ वर्ष से समुद्र-मंथन हो रहा है पर अभी तक अमृत कलश लेकर धन्वंतरि प्रकट नहीं हुए हैं ।योजना-संचिकाओं की मथनी से,लाल फ़ीतों से बुनी हुई रस्सी द्वारा,राजनीति की डगमगाती धुरी पर,सैकड़ों वर्षों से एकत्रित हुई,आर्थिक तथा सामाजिक समस्याओं के सागर में डूबी हुई देश के विकास की असीम संभावनाएं को बिलोया जा रहा है परंतु सागर तल से वांछित पदार्थ प्राप्त नहीं हो रहे हैं।
जनतांत्रिक व्यवस्था में कर्ता हैं,जनता और सत्ता,अतः रस्सी के एक छोर में आमजन और दूसरे छोर में सत्ताधीश और उनका अमला-जमला।कड़ी धूप में पसीना निकले अथवा मूसलाधार बारिश में,कीचड़ से सने हुए पैर फिसलते रहें,पर आमजन,डटकर खड़े होकर,पुरज़ोर रस्सी खींचकर अपना दायित्व पूरा करने का प्रयत्न करते हैं,परन्तु ,सत्ताधीश,वातानुकूलित कक्षों के भीतर गद्देदार आसन पर बैठकर,मंथन पर ही मंथन करने में व्यस्त रहते हैं और सत्ता-तंत्र से जुड़े सभी सदस्य,रस्सी को कम,और,एक दूसरे को अधिक,खींचने में लगे रहते हैं,हॉं ,कभी-कभी,भूल चूक हो जाने पर,रस्सी में एक-आध,हाथ लगा देते हैं।इस परिस्थिति में मथनी हिलती तो रहती है पर सवेग घूमती नहीं और मंथन क्रिया पूर्ण नहीं होती परिणाम- स्वरूप,पदार्थ,उल्टे-सीधे क्रम से,आधे-अधूरे, उभर रहे हैं ।कुछ पूर्ण रूप से निकल आए हैं और कुछ अभी भी लुप्त हैं ।
सामाजिक विद्वेष व आर्थिक असमानता रूपी हलाहल पूर्णतया प्रकट होकर अपने विष-वाष्प से ज्ञानी-विज्ञानी विद्वानों को उत्तरोतर दिग्भ्रमित कर रहा है,सिने-तारिका रूपी रंभा,पूर्ण-रूपेण दृष्टिगत होकर बंबई के बॉलीवुड से लेकर तामिलनाड के टॉलीवुड के मंचों पर लाखों दर्शकों को मोहित कर रही है,और,देशी-विदेशी मदिरा रूपी वारुणी देवी,नगर-नगर में अवतरित होकर ग्रामीण अंचलों तक हर प्रकार के प्याले-गिलासों में छलक रही है।इच्छा-पूर्ति संसाधन रूपी कल्पवृक्ष, उठा कर शासक अपने घर के आँगन में रोप चुका है,तथा संचार-प्रसार रूपी पाँचजन्य, राजनेताओं ने झपट कर अपने नियंत्रण में ले लिया है और मिथ्या शंखनाद के कर्णभेदी स्वर रात दिन सर्वत्र गूँज रहे हैं।यह पॉंच पदार्थ सागर से निकल चुके हैं और शेष में से अब कुछ धीरे-धीरे उभर रहे हैं
भरणपोषण रूपी कामधेनु के सींग दिखने लगे हैं,आर्थिक-गति रूपी उच्चैश्रवा की पूँछ,तथा, विकास रूपी ऐरावत के कान दृष्टिगोचर हो रहे हैं।कई दुर्लभ पदार्थ अभी भी अद्रश्य हैं।
प्रजा,सामाजिक-सौहार्द रूपी चंद्रमा,सर्व-सम्पन्नता रूपी लक्ष्मी तथा स्वस्थ जन-जीवन रूपी अमृत कलश के उदय की आशा में समुद्र तट पर बैठी हुई है और केवल,लगातार निकलते हुए सामाजिक विष-वाष्प से,बचने का प्रयास करने में लगी है ।
स्पष्टतः,सर्वप्रथम,दृढ़ राजनैतिक-इच्छाशक्ति रूपी भगवान शंकर अवतरित होने चाहिए ताकि
वे विद्वेष व असमानता के विष को कंठ में धारण कर समाज रूपी देह को जीवित रख कर,कठिन-निर्णय रूपी औषधि से विषों को प्रभावहीन कर,पूर्णतया स्वस्थ बना सकें।इसके बाद शासक व शासन तंत्र को समझना होगा कि कठोर समस्याओं के निदान के लिये कठिन निर्णय तथा कठोर परिश्रम अनिवार्य है।जनता व तंत्र दोनों को पूरी शक्ति लगानी होगी।अंततः राजनेताओं को समझना होगा कि राजनैतिक अस्थिरता से जनता व शासन तंत्र के सभी प्रयास निष्फल रहेंगे चाहे कोई भी दल सत्ता में हो।
शासन की अडिग इच्छाशक्ति,राजनैतिक धुरी की स्थिरता,और,रज्जु के दोनों ओर जनता व शासनतंत्र का,पूरी शक्ति से बराबर प्रयास,ही मथनी को सार्थक गति दे सकता है ताकि वांछित नवनीत प्राप्त हो सके।
(प्रो. एच सी पांडे, मानद कुलपति, बिट्स, मेसरा हैं)